महाभारत काल में हुई थी मंदिर की स्थापना, सम्राट हर्षवर्धन ने करवाया था जीर्णोद्धार
प्रारब्ध रिसर्च डेस्क, लखनऊ
उज्जैन के कालीघाट स्थित कालिका माता के प्राचीन मंदिर को गढ़ कालिका के नाम से भी जाना जाता है। देवियों में कालिका सबसे महत्वपूर्ण मानी जाती है। तांत्रिकों की सिद्धि के लिए यानी तांत्रिकों की देवी कालिका के इस मंदिर को चमत्कारी मंदिर भी माना जाता है। यहां तंत्र साधना के लिए देश ही नहीं, विदेश से भी लोगों का आना-जाना लगा रहता है।
तांत्रिकों की देवी कालिका के इस चमत्कारिक मंदिर की प्राचीनता के विषय में कोई नहीं जानता है। स्थानीय बाशिंदे बताते हैं कि उनके पूर्वजों का भी मंदिर की स्थापना कब हुई नहीं जानते थे। उन्होंने अपने पूर्वजों से सुना था कि इस मंदिर की स्थापना महाभारतकाल में हुई थी, लेकिन मूर्ति सतयुग के काल की है।
इस प्राचीन मंदिर का जीर्णोद्धार बाद में सम्राट हर्षवर्धन द्वारा कराए जाने का उल्लेख मिलता है। मंदिर के कुछ अंश का जीर्णोद्धार ई.सं. 606 के लगभग सम्राट हर्षवर्धन ने करवाया था। शक्ति-संगम-तंत्र में अवन्ति संज्ञके देश कालिका तंत्र विष्ठति कालिका का उल्लेख है।
वैसे तो गढ़ कालिका का मंदिर शक्तिपीठ में शामिल नहीं है, किंतु उज्जैन क्षेत्र में मां हरसिद्धि शक्तिपीठ होने के कारण इस क्षेत्र का महत्व बढ़ जाता है। पुराणों में उल्लेख मिलता है कि उज्जैन में शिप्रा नदी के तट के पास स्थित भैरव पर्वत पर मां भगवती सती के ओष्ठ गिरे थे।
इसी मंदिर के निकट लगा हुआ स्थिर गणेश का प्राचीन और पौराणिक मंदिर है। इसी प्रकार गणेश मंदिर के सामने भी एक हनुमान मंदिर प्राचीन है, वहीं विष्णु की सुंदर चतुर्मुख प्रतिमा है। खेत के बीच में गोरे भैरव का स्थान भी प्राचीन है। गणेशजी के निकट ही से थोड़ी दूरी पर शिप्रा की पुनीत धारा बह रही है।
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