Politics in Uttar Pradeshताऊ अजब सिंह से वीरेंद्र सिंह ने सीखी थीं सियासत की बारीकियां

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  • वर्ष 1980 में कांग्रेस प्रत्याशी को हराकर शुरू किया था सियासी सफर

  • छह बार रहे विधायक, एक बार एमएलसी और दो बार रहे प्रदेश में मंत्री



प्रारब्ध न्यूज ब्यूरो, शामली


जिले की सियासत में तगड़ा रसूख रखने वाले वीरेंद्र सिंह उत्तर प्रदेश की राजनीति में एक बार फिर दबदबा कायम करने जा रहे हैं। जिला पंचायत अध्यक्ष पद पर भाजपा की ताजपोशी में अहम भूमिका निभाने के बदले में वीरेंद्र सिंह को विधानपरिषद सदस्य पद प्रदान किया जा रहा है। पूर्व मंत्री वीरेंद्र ने अपने ताऊ चौधरी अजब सिंह से ही सियासत के दाव पेंच सीखे। पूर्व मंत्री वीरेंद्र सिंह को एक बार फिर एमएलसी बनाया जा रहा है।


पारिवारिक पृष्‍ठभूमि

कांधला ब्लाक क्षेत्र के गांव जसाला निवासी वीरेंद्र सिंह राजनीति शास्त्र से एमए हैं। इनके परिवार में बड़े भाई डा. यशवीर सिंह केंद्र सरकार में खादी ग्रामोद्योग बोर्ड के चेयरमैन रहे हैं। 


वहीं, भाई बीएस चौहान सुप्रीम कोर्ट में न्यायमूर्ति रहे हैं। वीरेंद्र सिंह के बड़े बेटे मनीष चौहान जिपं अध्यक्ष रह चुके हैं, जबकि पुत्रवधू शैफाली चौहान दो बार जिपं सदस्य हैं। इसके साथ ही छोटे बेटे विराट चौहान बिजनेस मैन हैं जबकि तीसरे बेटे अक्षय चौहान अमेरिका में शिक्षा ग्रहण कर रहे है।


लंबा राजनीतिक अनुभव


ग्रामीण अंचल से प्रदेश तक की सियासत में दबदबा रखने वाले वीरेंद्र सिंह का सियासी सफर 1980 से लोकदल से शुरू हुआ था। उन्‍होंने छह बार विधायक रहने का गौरव हासिल किया। एक बार कैबिनेट मंत्री व एक बार कैबिनेट का दर्जा मिलने के साथ एमएलसी पद पर भी रह चुके हैं। वीरेंद्र सिंह ने अपने ताऊ के निधन के उपरांत परिवार की राजनीतिक विरासत को आगे बढ़ाने का फैसला किया। वीरेंद्र सिंह ने लोकलद पार्टी से 1980 में चुनाव लड़ा। कांग्रेस के प्रत्याशी चमन सिंह को 4400 मतों से पराजित कर विधायक बने। 


सन 1985 में कांग्रेस के ठाकुर विजयपाल सिंह को पराजित किया। अंतिम बार साल 2002 में छठवीं बार एमएलए रहे। कांधला सीट पर वर्ष 2007 के चुनाव में वह बसपा के बलवीर सिंह किवाना से मात खा गए।


वर्ष 2012 में परिसीमन के दौरान कांधला सीट खत्म हुई तो सपा का दामन थामने वाले वीरेंद्र सिंह ने शामली से चुनावी रण में ताल ठोंकी। हालांकि इस बार भी भाग्य ने साथ नहीं दिया। इसी दौरान शामली में जिला पंचायत चुनाव का बिगुल फुंका तो पूर्व मंत्री को फिर अपनी ताकत आजमाने का मौका मिल गया। दो बार शिकस्त के ताजा जख्मों पर बेटे मनीष चौहान के जिला पंचायत अध्यक्ष बनते ही मानों मरहम लग गया। कांटे की टक्कर में हुए जिला पंचायत अध्यक्ष के चुनाव में दम दिखाने पर सपा हाईकमान ने उन्‍हें राज्यमंत्री का दर्जा दे दिया। इसके बाद एमएलसी का चुनाव लड़े। इसमें वीरेंद्र सिंह दूसरे स्थान पर रहे थे। इस बार बसपा के इकबाल चुनाव जीत गए। 


साल 2014 में मुजफ्फरनगर से सपा ने लोकसभा का टिकट भी थमा दिया। लोकसभा चुनाव में मजबूती से लड़े वीरेंद्र सिंह को हार का मुंह देखना पड़ा। 2015 में सपा ने पूर्व मंत्री वीरेंद्र सिंह को एमएलसी बना दिया था। वीरेंद्र सिंह शिवपाल के करीबी माने जाते थे। ऐसे में सपा में तवज्जो कम हो गई। यही वजह रही कि 2017 के चुनाव में मनीष चौहान ने बगावत कर चुनाव लड़ा। सन 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले वीरेंद्र सिंह भाजपा में शामिल हो गए। उम्मीद कैराना लोकसभा सीट से टिकट थी, लेकिन टिकट नहीं मिला। सन 2021 के जिला पंचायत अध्यक्ष चुनाव व ब्लाक प्रमुख के चुनाव में वीरेंद्र सिंह का सियासी प्रभाव फिर दिखा। अब एक बार फिर से वीरेंद्र सिंह को भाजपा की ओर से एमएलसी बनाया जा रहा है।

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