रामराज्य एक बड़ा कठिन आदर्श

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रामराज्य चार : बेबीलोन का राजा हर साल झापड़ क्यों खाता था

  • अजय शुक्ल
    अजय शुक्ल।

पानखोरों, रामखोरों और आरामखोरों को रामराज्य के बारे में बताने के लिए मैंने अपने मित्र बांके जी को बुला लिया था। बांके जी के भीतर ज्ञान उसी तरह भरा रहता है, जैसे कोकाकोला के अंदर कार्बनडाई ऑक्साइड। ऐसे टॉपिक धरती पर शायद ही हों जो बांके जी के दिमाग़ में दर्ज न हों।

बांके जी दाएं-बाएं गिरती पान की पीक वाले माहौल के आदी नहीं हैं। "और बांके जी, वॉट इज़ न्यू इन्फो" उनको सहज करने के लिए मैंने उन्हें छेड़ा। और, कोकाकोला का ढक्कन खुल गया। बोले, "एग्रीकल्चर के एवोल्यूशन पर एक अद्भुत क़िताब मिली है। पढ़ के लगा कि हम कुछ नहीं जानते। ज़रा सोचिए कि गेहूं और आदमी में क्या रिश्ता है। गेहूं आदमी का काम कर रहा है या आदमी गेहूं का?...आप कहेंगे आदमी खेती करता है और गेहूं खाता है। पर ऐसा भी तो है कि गेहूं हमारा इस्तेमाल अपना वंश बढ़ाने के लिए कर रहा है। इस काम के बदले वह हमको भोजन देता है।"

श्रोता अधीर होने लगे। वे रामराज्य के लिए आए थे। 'बोलो राजा रामचन्द्र की जय' किसी ने रास्ते पर लाने के लिए जयकारा लगाया। मैंने भी प्रश्नवाची आंखों से बांके जी की ओर देखा।

बांके जी मुस्कराए, "परेशान न हो। यह गेहूं पुराण यह बताने के लिए था कि रामराज्य हो या रावणराज्य, चीजें इतना सिंपल नहीं होतीं।..सत्य कॉम्प्लिकेटेड होता है। देशकाल के सापेक्ष होता है। दरअसल, हर राजा चाहता है कि उसके राज्य को अच्छा माना जाए। लोग समझें कि वह प्रजा पालक है। मानस में राम कहते है: जासु राज प्रिय प्रजा दुखारी, सो नृपु अवसि नरक अधिकारी।


"बांके जी, चरचा रामराज्य पर करनी थी" मैंने उन्हें फिर याद दिलाया।


"वहीं जा रहा हूं... और यह टोकाटाकी बन्द करो.. मैं अपनी इच्छा से नहीं आया।"


"ओके-ओके बांके जी, प्लीज़ कैरी ऑन" मैंने कहा और बांके जी शुरू हो गए।


"हां, तो मैं कह रहा था" बांके जी बोले, "खेल परसेप्शन का है ....क्या पता कि कलिंग के हत्यारे ने भारत भर में पत्थरों पर अपनी तारीफ इसीलिए छपवाई हो कि उसको प्रजापालक समझा जाए।


"सच तो यह है" बांके जी ने कहा, " कि राजा लोग खुद को प्रजा हितैषी साबित करने के लिए जाने क्या क्या करते रहते थे। एक उदाहरण बेबीलोन का है। वहां के राजा के गाल पर हर साल ज़बरदस्त थप्पड़ मारा जाता था।"


राजा के गाल पर थप्पड़...यह सुनते ही श्रोता जागृत हो गए, ''प्लीज़ बताइए न इसका पूरा ब्योरा समझाइए।"


"हज़ारों साल पहले बेबीलोनवासी इस बात की परीक्षा लेते थे कि राजासाहब ने बीते साल जनता को कोई दुख तो नहीं दिया। अगर यह साबित होता था कि राजा ने प्रजा को बहुत सताया है तो राजा को गद्दी त्यागनी पड़ती थी।"


"लेकिन थप्पड़...?" किसी श्रोता से न रहा गया।


"इस काम के लिए साल में एक दिन तय था। उस दिन बेबीलोन राज्य के देवता विशेष मरदूक के मंदिर के प्रांगण में समारोह होता था। राजा आता और मरदूक को प्रणाम कर जनता की ओर मुंह करके एक कुर्सी पर बैठ जाता था। फिर मरदूक का मुख्य पुजारी आकर राजा के गाल पर थप्पड़ का भीषणतम प्रहार करता था। थप्पड़ के बाद यह जांचा जाता था कि राजा की आंखों में आंसू छलके या नहीं।"


"यह तो बढ़िया था" किसी श्रोता ने कहा, अगली बार सरकार बनेगी तो हम 'राइट टु स्लैप' की मांग करेंगे।"


"दरअसल" बांके जी ने कहा, "वहां राजा अपने पुजारी से पहले ही बोल देता था कि चाटा भरपूर हो ताकि आंसू निकल आए। आंसू निकलने को इस बात की पुष्टि माना जाता था कि राजा ने आउटगोइंग वर्ष में जनता को कोई कष्ट नहीं दिया। अतः वह अगले साल भी गद्दी पर बैठने के लायक मान लिया जाता था।"


"बांके जी, मैंने कहा, "अब मानस में चर्चित रामराज्य के बारे में बताइए।"


"ओके, मगर इतना जान लो रामराज्य एक बड़ा कठिन आदर्श है। प्रयास करने में ही वहां-वहां से पसीना निकलेगा जहां का नाम नहीं लिया जाता।"


ऐसा क्यों? किसी ने पूछा। बांके जी बोले: "ऐसा इसलिए कि रामचन्द्र हों या गिरधारी लाल। मात्र उनके बैठने से सरयू निर्मल न हो जाएगी। और, जिस देश में सैकड़ों बड़ी नदियां हों और वे भी अधिकांश सरयू से बड़ी वहां नदियों को साफ करने के लिए किसी भगीरथ को आना पड़ेगा।


"आगे आइए, तुलसी कहते हैं: दैहिक दैविक भौतिक तापा। राम राज नहिं काहुहि ब्यापा।।


" यह कैसे होगा। दैहिक व्याधियों को ही ले लें। कैसे ठीक कर लेंगे। झूठ बोलकर? झूठ बोलकर वोटर को बेवकूफ बनाया जा सकता है, बीमारी को नहीं। बीमारी झुट्ठों की जान ले लेती है।


"तो, जैसा मैंने कहा, रामराज्य एक आदर्श का नाम है। इन्हें डिरेक्टिव प्रिंसीपल्स ऑफ स्टेट पॉलिसी बना सकते हैं। फंडामेंटल राइट्स में डाला तो नानी याद आ जाएगी। सो, आप लोगों को में रामराज्य की चौपाइयां सुनता हूं। उनको याद रखिए और कोरोना से बचे रहिए।


*सब नर करहिं परस्पर प्रीती। चलहिं स्वधर्म निरत श्रुति नीती।


अर्थात, सब मनुष्य परस्पर प्रेम करते हैं और वेदों में बताई हुई नीति (मर्यादा) में तत्पर रहकर अपने-अपने धर्म का पालन करते हैं



* अल्पमृत्यु नहिं कवनिउ पीरा। सब सुंदर सब बिरुज सरीरा

नहिं दरिद्र कोउ दुखी न दीना। नहिं कोउ अबुध न लच्छन हीना


अर्थात, छोटी अवस्था में मृत्यु नहीं होती, न किसी को कोई पीड़ा होती है। सभी के शरीर सुंदर और निरोग हैं। न कोई दरिद्र है, न दुःखी है और न दीन ही है। न कोई मूर्ख है और न शुभ लक्षणों से हीन ही है।


*सब निर्दंभ धर्मरत पुनी। नर अरु नारि चतुर सब गुनी॥

सब गुनग्य पंडित सब ग्यानी। सब कृतग्य नहिं कपट सयानी। 


अर्थात, सभी दम्भरहित हैं, धर्मपरायण हैं और पुण्यात्मा हैं। पुरुष और स्त्री सभी चतुर और गुणवान्‌ हैं। सभी गुणों का आदर करने वाले और पण्डित हैं तथा सभी ज्ञानी हैं। सभी कृतज्ञ (दूसरे के किए हुए उपकार को मानने वाले) हैं, कपट-चतुराई (धूर्तता) किसी में नहीं है।


* सब उदार सब पर उपकारी। बिप्र चरन सेवक नर नारी॥

एकनारि ब्रत रत सब झारी। ते मन बच क्रम पति हितकारी। 


अर्थात, सभी नर-नारी उदार हैं, सभी परोपकारी हैं और ब्राह्मणों के चरणों के सेवक हैं। सभी पुरुष मात्र एक पत्नीव्रती हैं। इसी प्रकार स्त्रियाँ भी मन, वचन और कर्म से पति का हित करने वाली हैं।

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