अमन की फाख्ता

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इस बार दो-दो पंक्तियों की मेरी कुछ मन पसंद रचनाएँ आपकी सेवा में प्रस्तुत हैं-
-१-
अमन की फाख्ता को क़ैद रखना है नहीं अच्छा
मेरी मानो परस्पर बैर रखना है नहीं अच्छा.
-२-
दिलों में जो भी नफरत है उसे अब छोडना अच्छा
वतन रूपी जो माला है उसे अब जोड़ना अच्छा.
-३-
अमन को शर्त कर लें और मोहब्बत फ़र्ज़ हो जाये
अदा यूँ अपनी धरती का चलो कुछ क़र्ज़ हो जाए.
-४-
तुम्हारा दर्द मैं समझूँ मेरी पीड़ा को समझो तुम
चलो मैं फूल बन जाऊं तो फिर बन जाओ खुशबू तुम.
-५-
अगर मैं बूँद बनता हूँ तो गागर तुम बनो उसका
अगर मैं सीप बनता हूँ तो सागर तुम बनो उसका.
-६-
चलो तुम दीप बन जाना मुझे बाती बना लेना
अंधेरों को मिटाना हो तो फिर मुझको जला लेना.
-७-
भले धरती बना कर मेरा सीना चीर डालो तुम
मगर आकाश से वर्षा की सूरत खूब बरसो तुम.
-८-
चलो कुछ इस तरह मिल कर नयी फसलें उगायें हम
वतन को हर तरह से आत्म निर्भर फिर बनायें हम.
-९.-
चलो आओ कि मिल कर फिर नया सूरज उगाना है
वतन की सर ज़मीं को इक नया गुलशन बनाना है.
-१0
अगर हमने न समझा आज मिल कर ज़िम्मेदारी को
तो फिर मजबूर हो जायेंगी आँखें अश्कबारी को

११--अगर चाहो मेरे आँगन में उतरा.. चाँद तूम लेलो।
        मगर विशवास का अपने वो इक जुगनू मुझे देदो।।
(अय्यूब खान)

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