Health awareness:नई मां के व्यवहार में आने वाले बदलावों को पहचानें व उसे सहयोग करें: प्रो. नीना

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प्रारब्ध न्यूज़ ब्यूरो, कानपुर 

स्वस्थ नारी सशक्त परिवार अभियान (17 सितम्बर से 2 अक्तूबर 2025) के तहत गणेश शंकर विद्यार्थी स्मारक चिकित्सा महाविद्यालय (जीएसवीएम मेडिकल कॉलेज) के स्त्री एवं प्रसूति रोग विभाग और मानसिक रोग विभाग की ओर से  गुरुवार को प्रसवोत्तर मानसिक  स्वास्थ्य जागरूकता कार्यक्रम (Postpartum mental  health awareness camp) का आयोजन किया गया। उसमें नोडल अफसर प्रो. नीना गुप्ता ने बताया कि नई माँ के व्यवहार में आने वाले बदलावों को पहचानना और सहयोग करना चाहिए।

नोडल अधिकारी प्रो. नीना गुप्ता ने बताया कि "हमें इस समस्या के प्रति जागरूकता बढ़ाने की जरूरत है। परिवार को भी नई माँ के व्यवहार में आने वाले बदलावों को पहचानना और सहयोग करना चाहिए। सही समय पर परामर्श और इलाज से इस स्थिति को पूरी तरह से ठीक किया जा सकता है। इस दौरान 75 मरीज शामिल हुए।


इससे पहले कार्यक्रम का शुभारंभ मेडिकल कॉलेज के प्राचार्य प्रो. संजय काला एवं उप प्राचार्या प्रो. ऋचा गिरी,  प्रमुख अधीक्षक डॉ  आरके सिंह, स्त्री एवं प्रसूति रोग विभागाध्यक्ष प्रो. रेनु गुप्ता, मानसिक रोग विभागाध्यक्ष प्रो. धनंजय चौधरी, नोडल ऑफिसर डॉ नीना गुप्ता ने किया।


विभागाध्यक्ष प्रो. रेनू गुप्ता ने गर्भवती स्त्रियों एवं उनके परिवारजनों को प्रसव के पश्चात के शरीर की रिकवरी, घावों की जांच और किसी भी जटिलता के लिए निगरानी रखने के बारे में बताया।वहीं, मनोरोग विभाग के विभागाध्यक्ष प्रो. धनंजय ने बताया कि प्रसवोत्तर मनोरोग संबंधी विकारों की व्यापकता उनके प्रकार पर निर्भर करती है। इसमें प्रसवोत्तर ब्लूज़ (बेबी ब्लूज़), प्रसवोत्तर अवसाद, प्रसवोत्तर मनोविकार शामिल हैं।


मुख्य वक्ता मनोरोग विभाग की डॉ. शिखा ने बताया कि यह विकार अलग-अलग महिलाओं में अलग-अलग रूप से पाए जाते हैं, जिनमें सबसे आम से लेकर दुर्लभ तक शामिल हैं।इसमें प्रसवोत्तर मनोविकार बहुत ही दुर्लभ लेकिन गंभीर मानसिक बीमारी है जो की बच्चे के जन्म के बाद अचानक हो सकती है। यह लगभग 1,000 में से 1 माँ को प्रभावित करती है। यह आमतौर पर बच्चे के जन्म के पहले दो से तीन हफ्तों के भीतर शुरू होती है। यह एक मेडिकल इमरजेंसी है। इसलिए तुरंत इलाज की जरूरत होती है।


प्रसवोत्तर मनोविकार का इलाज संभव है। इसमें आमतौर पर डॉक्टर की सलाह, दवाइयाँ और थेरेपी शामिल होती है। ग्रामीण क्षेत्रों में जागरूकता की कमी और मानसिक स्वास्थ्य से जुड़ी समस्याओं को सामाजिक कलंक मानने के कारण कई महिलाएं इलाज से वंचित रह जाती हैं।  


कार्यक्रम में सभी संकाय सदस्यों का सहयोग रहा। संचालन डॉ. प्रतिमा वर्मा ने किया। इस अवसर पर डॉक्टर अनीता गौतम, डॉ सीमा द्विवेदी, डॉ शैली अग्रवाल, डॉ पाविका लाल, डॉ रश्मि यादव आदि मौजूद रहीं।


मुख्य लक्षण ये होते हैं


-बहुत ज्यादा भ्रमित महसूस करना

-सोचने समझने में दिक्कत महसूस करना

.-शक करना, अधिक ऊर्जावान होना

-नींद में कमी, बच्चे या स्वयं को नुकसान पहुंचाने का डर या विचार आना।

.-प्रसव के बाद महिलाओं के शरीर में होने वाले हार्मोनल बदलाव

.-नींद की कमी, नई जिम्मेदारियों का दबाव और पारिवारिक सहयोग की कमी।

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