विक्रम संवत : 2079
शक संवत : 1944
अयन : उत्तरायण।
ऋतु : ग्रीष्म ऋतु
मास - ज्येष्ठ
पक्ष - कृष्ण
तिथि - तृतीया रात्रि 11:36 तक तत्पश्चात चतुर्थी
नक्षत्र - ज्येष्ठा सुबह 08:10 तक तत्पश्चात मूल
योग - सिद्ध शाम 06:45 तक तत्पश्चात साध्य
राहुकाल - दोपहर 12:35 से दोपहर 02:14 तक
सूर्योदय - 06:01
सूर्यास्त - 19:09
दिशाशूल - उत्तर दिशा में
पंचक
पंचक का आरंभ- 22 मई 2022, रविवार को 11.13 मिनट से
पंचक का समापन- 26 मई 2022, मंगलवार को 24.39 मिनट पर।
एकादशी
गुरुवार, 26 मई 2022- अचला (अपरा) एकादशी
अमावस्या
ज्येष्ठ अमावस्या सोमवार 30 मई, 2022।
प्रदोष व्रत
27 मई शुक्रवार प्रदोष व्रत
व्रत पर्व विवरण -
विशेष - तृतीया
विघ्नों और मुसीबते दूर करने के लिए
19 मई 2022 गुरुवार को संकष्ट चतुर्थी (चन्द्रोदय रात्रि 11:02)
शिव पुराण में आता हैं कि हर महीने के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी ( पूनम के बाद की ) के दिन सुबह में गणपतिजी का पूजन करें और रात को चन्द्रमा में गणपतिजी की भावना करके अर्घ्य दें और ये मंत्र बोलें :
ॐ गं गणपते नमः ।
ॐ सोमाय नमः ।
चतुर्थी तिथि विशेष
चतुर्थी तिथि के स्वामी भगवान गणेशजी हैं।
हिन्दू कैलेण्डर में प्रत्येक मास में दो चतुर्थी होती हैं।
पूर्णिमा के बाद आने वाली कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को संकष्ट चतुर्थी कहते हैं।अमावस्या के बाद आने वाली शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को विनायक चतुर्थी कहते हैं।
शिवपुराण के अनुसार “महागणपतेः पूजा चतुर्थ्यां कृष्णपक्षके। पक्षपापक्षयकरी पक्षभोगफलप्रदा ॥
“ अर्थात प्रत्येक मास के कृष्णपक्ष की चतुर्थी तिथि को की हुई महागणपति की पूजा एक पक्ष के पापों का नाश करनेवाली और एक पक्षतक उत्तम भोगरूपी फल देनेवाली होती है ।
कोई कष्ट हो तो
हमारे जीवन में बहुत समस्याएँ आती रहती हैं, मिटती नहीं हैं ।, कभी कोई कष्ट, कभी कोई समस्या | ऐसे लोग शिवपुराण में बताया हुआ एक प्रयोग कर सकते हैं कि, कृष्ण पक्ष की चतुर्थी (मतलब पुर्णिमा के बाद की चतुर्थी ) आती है | उस दिन सुबह छः मंत्र बोलते हुये गणपतिजी को प्रणाम करें कि हमारे घर में ये बार-बार कष्ट और समस्याएं आ रही हैं वो नष्ट हों |
छः मंत्र इस प्रकार हैं –
ॐ सुमुखाय नम: : सुंदर मुख वाले; हमारे मुख पर भी सच्ची भक्ति प्रदान सुंदरता रहे ।
ॐ दुर्मुखाय नम: : मतलब भक्त को जब कोई आसुरी प्रवृत्ति वाला सताता है तो… भैरव देख दुष्ट घबराये ।
ॐ मोदाय नम: : मुदित रहने वाले, प्रसन्न रहने वाले । उनका सुमिरन करने वाले भी प्रसन्न हो जायें ।
ॐ प्रमोदाय नम: : प्रमोदाय; दूसरों को भी आनंदित करते हैं । भक्त भी प्रमोदी होता है और अभक्त प्रमादी होता है, आलसी । आलसी आदमी को लक्ष्मी छोड़ कर चली जाती है । और जो प्रमादी न हो, लक्ष्मी स्थायी होती है ।*
ॐ अविघ्नाय नम:
ॐ विघ्नकरत्र्येय नम:
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