Dharm: कर्ज में डूबे त‌िरुपत‌ि बाला जी

प्रारब्ध अध्यात्म डेस्क,लखनऊ


पौराणिक कथाओं के अनुसार एक बार महर्षि भृगु बैकुंठ धाम पहुँचे।वहाँ पहुँचते ही उन्होंने शेष शैय्या पर योगनिद्रा में लेटे भगवान विष्णु की छाती पर एक लात मारी।भगवान विष्णु ने तुरन्त भृगु के चरण पकड़ लिए और पूछने लगे कि ऋषिवर, पैर मे कोई चोट तो नहीं लगी।


भगवान विष्णु के इतना कहने पर ऋषि भृगु ने दोनों हाथ जोड़ लिए और कहने लगे कि आप सबसे सहनशील देवता हैं, इसलिए यज्ञ भाग के प्रमुख अधिकारी आप ही हैं। लेकिन देवी लक्ष्मी को भृगु ऋषि का यह व्यवहार पसंद नहीं आया और और वह विष्णु जी से नाराज हो गईं। 


नाराजगी इस बात से थी क‌ि भगवान ने भृगु ऋष‌ि को दंड क्यों नहीं द‌िया।नाराजगी में देवी लक्ष्मी बैकुंठ छोड़कर चली गई। भगवान व‌िष्णु ने देवी लक्ष्मी को ढूंढना शुरु क‌िया तो पता चला क‌ि देवी ने पृथ्वी पर पद्मावती नाम की कन्या के रुप में जन्म ल‌िया है।


भगवान व‌िष्णु ने भी तब अपना रुप बदला और पहुंच गए पद्मावती के पास। भगवान ने पद्मावती के सामने व‌िवाह का प्रस्ताव रखा ज‌िसे देवी ने स्वीकार कर ल‌िया।लेक‌िन प्रश्न सामने यह आया क‌ि व‌िवाह के ल‌िए धन कहां से आएगा। इस समस्या का समाधान न‌िकालने के ल‌िए, बाला जी (व‌िष्णु जी) ने भगवान श‌िव और ब्रह्मा जी को साक्षी रखकर कुबेर से काफी धन कर्ज में ल‌िया।


इस कर्ज से भगवान व‌िष्णु के वेंकटेश रुप और देवी लक्ष्मी के अंश पद्मवती ने व‌िवाह क‌िया।कुबेर से कर्ज लेते समय भगवान ने वचन द‌िया था क‌ि कल‌ियुग के अंत तक वह अपना सारा कर्ज चुका देंगे। कर्ज समाप्त होने तक वह सूद चुकाते रहेंगे। भगवान के कर्ज में डूबे होने की इस मान्यता के कारण बड़ी मात्रा में भक्त धन-दौलत भेंट करते हैं ताक‌ि भगवान कर्ज मुक्त हो जाएं।भक्तों से म‌िले दान की बदौलत आज यह मंद‌िर लगभग 50 हजार करोड़ की संपत्त‌ि का माल‌िक बन चुका है।

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