बाबा भोलेनाथ की महिमा अपार

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प्रारब्ध अध्यात्म ब्यूरो,लखनऊ


महाशिवरात्रि के पर्व का अपना ही महत्व है। इस पर्व में श्रद्धालुओं की असीम श्रद्धा होती है। इस दिन कहां जाता है कि माता पार्वती का विवाह भोलेनाथ से संपन्न हुआ था। इसके दूसरे दिन आने वाली अमावस्या को विवाह पश्चात की विशेष रात्रि के रूप में मनाया जाता है।


बाबा भोलेनाथ को एक पत्नी समर्पित माना जाता है। वह पार्वती मां को अत्यंत स्नेह करते थे। यही वजह है कि कुंवारी कन्याएं, शिव की तरह पति प्राप्ति के लिए कामना करती हैं। कहा जाता है कि हर जन्म में भगवान शिव ने मां पार्वती का ही वरण किया था। हर जन्म में उनके  मिलन की कथा अनूठी और पवित्र है।


 शिवरात्रि के दिन भक्त, शिव मंदिरों में जाकर शिवलिंग पर बेलपत्र आदि चढ़ाते हैं और पूजन करते हैं। इस दिन उपवास भी रखकर, रात्रि जागरण करते हैं। शिवलिंग पर बेलपत्र चढ़ाना, उपवास तथा रात्रि जागरण करना एक विशेष कर्म की ओर इशारा करता है।

 
इसी दिन बाबा भोलेनाथ का विवाह हुआ था, इसलिए रात में रात्रि में शिवजी की बारात निकाली जाती है। वास्तव में शिवरात्रि का पर्व, स्वयं परमपिता परमात्मा का सृष्टि पर अवतरित होने की स्मृति दिलाता है।


शिवरात्रि व्रतं नाम सर्वपापं प्रणाशनम्।

आचांडाल मनुष्याणं भुक्ति मुक्ति प्रदायकं।।


चतुर्दशी तिथि के स्वामी भगवान शिव हैं। ज्योतिष शास्त्रों में इसे परम शुभ फलदायी कहा गया है। वैसे तो शिवरात्रि हर महीने में आती है परंतु फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी को ही महाशिवरात्रि कहा गया है।

 
इस समय सूर्य देव उत्तरायण में आ चुके होते हैं। ऋतु परिवर्तन का यह समय अत्यंत शुभ कहा गया है। शिव का अर्थ है कल्याण, शिव सबका कल्याण करने वाले हैं। अतः महाशिवरात्रि पर सरल उपाय करने से ही इक्षित सुख की प्राप्ति होती है।

 
भगवान शिव के मस्तक पर चंद्रमा सुशोभित है अतः शिवजी की पूजा करने पर चंद्र देव की कृपा प्राप्त होती है। भगवान शिव की प्रिय तिथि शिवरात्रि है इसलिए पंडित, श्रद्धालुओं को शिवरात्रि को प्रार्थना कर कष्टों से मुक्ति पाने का सुझाव देते हैं।


भगवान शिव अनंत हैं। सृष्टि के विनाश व पुनः निर्माण के बीच की कड़ी हैं। प्रलय यानि कष्ट,पुनः निर्माण यानि सुख। अतः भगवान शिव को सुख, समृद्धि, ऐश्वर्य, वैभव, सौभाग्य एवं कल्याण का प्रतीक मानकर महाशिवरात्रि पर अनेक प्रकार के पूजन व्रत और अनुष्ठान करने की बात कही गई है।

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