Bank Workers' Nationwide Strike has a Huge Impact, ATMs Completely Empty : बैंककर्मियों की राष्ट्रव्यापी हड़ताल का व्यापक असर, एटीएम पूरी तरह खाली

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बैंकों में जमा जनता के धन पर पूॅजीपतियों और नेताओं की नजर है : पवन कुमार



प्रारब्ध न्यूज ब्यूरो, लखनऊ


केन्द्र सरकार द्वारा सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों को निजीकरण कर बेचने की साजिश के तहत शुक्रवार को दूसरे दिन भी यूनाइटेड फोरम ऑफ बैंक यूनियन्स के आवाह्न पर बैंककर्मियों की राष्ट्रव्यापी हड़ताल जारी रही। हड़ताल के चलते सभी सरकारी बैंकों की शाखाओं एवं कार्यालयों में ताले लगे रहे। दूसरे दिन बैंक के अधिकारी और कर्मचारियों ने हजरतगंज स्थित इण्डियन बैंक प्रांगण में सभा की। सरकार के खिलाफ जमकर नारेबाजी करते हुए भड़ास निकाली।



बैंक हड़ताल के दूसरे दिन इण्डियन बैंक हजरतगंज में सभा को सम्बोंधित करते हुए आल इण्डिया बैंक आफीसर्स कन्फेडरेशन (ऑयबाक) के राष्ट्रीय वरिष्ठ उपाध्यक्ष पवन कुमार ने कहा कि बैंकों में जमा जनता के धन पर पूंजीपतियों और नेताओं की नजर है। बैंकों का निजीकरण होने पर सरकार उन्हें बड़े लोन स्वीकृत करवाएगी। उसके बाद फिर ऋण लेने वाला उस ऋण को एनपीए कराने के बाद मात्र 10 या 15 फीसद धनराशि देकर ऋण का सेटलमेंट करा लेगा। अगर ऋण भुगतान का दबाव डाला जाएगा तो देश छोड़कर भाग जायगा। इसके प्रत्यक्ष उदाहरण विजय माल्या, नीरव मोदी, चन्दा कोचर आदि हैं। जनता भी इस चाल को समझ चुकी है। इसलिए अब सरकार की मनमानी नहीं चलने देंगे।



एनसीबीई के प्रदेश महामंत्री अखिलेश मोहन ने कहा कि वरिष्ठ कर्मचारियों की सेवानिवृत्ति हो रही है। उसके बावजूद पर्याप्त मात्रा में नये कर्मचारियों की भर्ती नहीं की जा रही है। ऐसे में प्रति कर्मचारी कार्य का बोझ बढ़ रहा है। वहीं, दूसरी तरफ सरकार ने मनमाने तरीके से बैंकों का विलय किया। अब तो सरकार ने बैंकों का निजीकरण कर बेचने की तैयारी कर दी है, ऐसा हरगिज नहीं होने देंगे।


प्रदर्शन में यूपी बैंक इम्पलाइज यूनियन के प्रदेश उपाध्यक्ष दीप बाजपेई ने आमजन से अपील की है कि सरकार द्वारा राष्ट्रीयकृत बैंकों को बेचने के विरूद्ध आवाज उठाने में हमारा साथ दें। इन बैंकों के लाखों छोटे जमाकर्ता, किसान, छोटे एवं मझौले उद्योग, स्वयं सहायता समूह व छोटे कर्जदारों के साथ राजनीतिक दलों और श्रम संगठनों से अनुरोध है कि हमारे आंदोलन में शामिल हों। ताकि जनता की गाढ़ी कमाई को बर्बाद होने से रोका जा सके। 




इण्डियन बैंक अधिकारी संघ के आरएन शुक्ला ने कहा कि बैंक निजीकरण से बैंक जमा की सुरक्षा कमजोर होगी। भारत में जमाकर्ता की कुल बचत, जो कि 87.6 लाख करोड़ रुपये है, उसका लगभग 70 प्रतिशत हिस्सा 60.7 लाख करोड़ सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक के पास है। इसकी वजह आमजन अपनी जमा के लिए सरकारी बैंकों को प्राथमिकता देना है।


फोरम के प्रदेश संयोजक वाईके अरोडा ने कहा कि सार्वजनिक क्षेत्र का निजीकरण अर्थव्यवस्था के लिए प्रतिकूल कदम है। बैंकों का निजीकरण सरकार के रणनीतिक विनिवेश का हिस्सा है, जिसके तहत आर्थिक उदारीकरण के नाम पर लगभग 5.30 लाख करोड़ रुपये का हिस्सा सरकार पहले ही बेच चुकी है। सरकार के इन कुत्सित कार्यों व प्रयासों का विरोध करते हैं।


जिला संयोजक अनिल श्रीवास्तव ने बताया कि सरकार बैंकों का निजीकरण कर आमजन की सामान्य बैंकिग सुविधाएं छीनना चाहती है। यह आन्दोलन सिर्फ बैंककर्मियों का नहीं बल्कि आमजन का आन्दोलन है। अगर सरकार हमारी मांग नहीं मानती है तो हम लम्बे संघर्ष के लिए तैयार हैं।



सभा को संदीप सिंह, केएच पाण्डेय, रामनाथ शुक्ला, सौरभ श्रीवास्तव, एसके अग्रवाल, अनिल श्रीवास्तव, डीपी वर्मा, छोटेलाल, विभाकर कुशवाहा, राजेश शुक्ला, एसके लहरी, अमरजीत सिंह, एसके संगतानी, दीपेन्द्रलाल, नन्दू त्रिवेदी, एसडी मिश्रा, वीके सिंह, अमरजीत सिंह, डीपी वर्मा, विनय सक्सेना, यूपी दुबे आदि ने इसी प्रकार एकता से जुडे़ रहकर लम्बे संघर्ष के लिए तैयार रहने का आवाह्न किया।


दो दिनों की हड़ताल से लखनऊ में लगभग 3000 करोड़ रुपये तथा प्रदेश में 40000 करोड़ रुपये का लेनदेन प्रभावित हुआ है। हड़ताल के दोनों दिन राष्ट्रीयकृत बैंकों के लखनऊ जिले की 905 शाखाओं के 10,000 बैंककर्मी तथा प्रदेश की 14,000 शाखाओं के 2 लाख बैंककर्मी शामिल रहें। लखनऊ में 990 एवं प्रदेश के 12000 एटीएम में से कई में कैश समाप्त हो गया। बड़ी संख्या में एटीएम खराब व बन्द होने से लोग अपना पैसा नहीं निकाल सके। इसी तरह ऑनलाइन बैंकिग नेटवर्क समस्या से जूझता रहा। लोग दिनभर परेशान रहे। हड़ताल के कारण पेन्शनधारकों, वेतनभोगियों एवं आमजन को परेशानी का सामना करना पड़ा। शाखाओं में जमा व निकासी, एफडी रिन्यू, ऋण सम्बन्धी कार्य, सरकारी खजानेे एवं व्यापार से जुडे़ कार्य भी प्रभावित हुए।

 

  • अनिल तिवारी, मीडिया प्रभारी, यूएफबीयू।

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