Indian Heritage: मणिकर्णिका घाट(वाराणसी) का महत्व

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प्रारब्ध न्यूज़- अध्यात्म


विश्व की प्राचीनतम शहरों में वाराणसी का नाम आता है। वाराणसी हिंदुओं का एक पवित्र तीर्थ स्थल है। इसे काशी भी कहा जाता है, जोकि उत्तर प्रदेश में स्थित है। इस नगर को बौद्ध धर्म और जैन धर्म में भी माना जाता है। इसे अविमुक्त क्षेत्र कहा गया है।


अविमुक्त क्षेत्र

यह अविमुक्त क्षेत्र देवताओं का देवस्थान और सभी प्राणियों का ब्रह्म सदन है।


एक बार महर्षि याज्ञवल्क्य से महर्षि अत्री ने अव्यक्त और अनंत परमात्मा को जानने का तरीका पूछा, तब याज्ञवल्क्य ऋषि ने कहा कि उस अव्यक्त और अनंत आत्मा की उपासना अविमुक्त क्षेत्र में हो सकती है क्योंकि वे वही प्रतिष्ठित हैं। अत्री ऋषि अविमुक्त की स्थिति पूछने पर याज्ञवल्क्य ने उत्तर दिया कि वह वरणा और नाशी नदियों के मध्य में है। यह वरणा और नाशि क्या है, यह पूछने पर बताया कि इंद्रियकृत सभी दोषों का निवारण करने वाली वरणा है एवं इंद्रियकृत सभी पापों का नाश करने वाली नाशि है।


यहाँ प्राणियों के प्राण- प्रयाण के समय भगवान रुद्र तारक मंत्र का उपदेश देते है। जिसके प्रभाव से वह अमृती होकर मोक्ष प्राप्त करता है। अतएव अविमुक्त में निवास करना चाहिए ऐसा महर्षि याज्ञवल्क्य ने कहा है।


मणिकर्णिका 

कुछ लोगों का मानना है कि भगवान शिव और पार्वती के स्नान के लिए विष्णु जी ने कुआं खोदा था। जब शिव इस कुंड में स्नान कर रहे थे तब उनका एक कुंडल इस कुएं में गिर गया था। 
जिसे लोग अब मणिकर्णिका कुंड या घाट के नाम से भी जानते हैं।मणिकर्णिका मतलब मणि(कुंडल) और कर्णम (कान)।


यह भी कहा जाता है कि भगवान शिव ने मणिकर्णिका घाट को अनंत शांति का वरदान दिया है। लोगों का यह मानना है कि यहां हजारों साल तक भगवान विष्णु ने भगवान शिव की आराधना की थी और यह प्रार्थना की थी कि सृष्टि के विनाश के समय भी काशी को नष्ट ना किया जाए।


श्री विष्णु की प्रार्थना से प्रसन्न होकर भगवान शिव अपनी पत्नी पार्वती के साथ काशी आए और उन्होंने भगवान विष्णु की मनोकामना पूरी की। तभी से यह मान्यता है कि वाराणसी में अंतिम संस्कार करने से मोक्ष (अर्थात व्यक्ति को जीवन- मरण के चक्र से छुटकारा मिल जाता है) की प्राप्ति होती है। इसलिए इसमें कोई संदेह नहीं हिंदुओं में यह स्थान अंतिम संस्कार के लिए सबसे पवित्र माना जाता है।

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