प्रारब्ध अध्यात्म डेस्क, लखनऊ
नवीं शताब्दी का कटारमल सूर्य मंदिर 2116 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। इस मंदिर के अवशेष मिले हैं, जो हमारे पूर्वजों की इंजीनियरिंग कौशल को प्रदर्शित करते हैैं।
जब इस मंदिर पर सूर्य की पहली किरण पड़ती है तो यह सूर्य देव की प्राचीन मूर्ति प्रकाशमान हो जाती है। इस मूर्ति को भक्तगण बड़ा आदित्य कह कर भी पुकारते हैं।
पौराणिक ग्रंथों में इसका उल्लेख आता है। सतयुग में उत्तराखंड की कंदराओं में जब ऋषि- मुनियों पर धर्ममद्वेषी असुरों ने अत्याचार किए थे, तब द्रोणागिरी (दूनागिरी), कश्यप पर्वत तथा कंजार पर्वत के ऋषि- मुनियों ने कौशिकी (कोसी) नदी के तट पर आकर सूर्य देव की स्तुति की थी। ऋषि मुनियों की स्तुति से प्रसन्न होकर सूर्य देव ने अपने दिव्य तेज को वटशिला में स्थापित कर दिया था।
इसी वटशिला पर कत्यूरी राजवंश के शासक कटारमल ने बड़ादित्य नामक तीर्थ स्थान के रूप में सूर्य मंदिर का निर्माण करवाया। जो अब कटारमल सूर्य मंदिर के नाम से प्रसिद्ध है। यह मंदिर उत्तराखंड के अल्मोड़ा जिले के कटारमल स्थान पर स्थित है।
मंदिर के परिसर में एक मुख्य मंदिर है, जो 45 छोटे-छोटे उत्कृष्ट नक्काशीदार मंदिरों से घिरा हुआ है। इस मंदिर में शिव-पार्वती और लक्ष्मी-नारायण जी की मूर्तियां भी हैं ।
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