- बिहार में चार धुरंधर दो इंजीनियर, एक डीएसपी, एक क्लर्क
- डीएसपी साहब नौकरी छोड़कर बने एमएलए, सांसद, मंत्री
- मध्यप्रदेश का इंजीनियर यहां आकर बन गया खांटी बिहारी
- शरद का इंजीनियर चेला संभाल रहा आज राज्य की कमान
- क्लर्क पहले बना राज्य का मुख्यमंत्री, काट रहा जेल में सजा
प्रारब्ध न्यूज ब्यूरो, पटना
बिहार और बिहारी फर्स्ट का नारा देकर बेटे चिराग को उत्तराधिकार सौंप अंतिम सांस लेने वाले रामविलास पासवान, जद (यू) से अपने अधिकार का मुकदमा लड़ रहे शरद यादव, जेल में चारा घोटाला की सजा काट रहे लालू प्रसाद यादव और बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार चार दशक से राजनीति का केंद्र रहे हैं।
उम्र में सबसे बड़े पासवान
उम्र में सबसे बड़े 74 वर्षीय रामविलास पासवान के गुजर जाने के बाद पासवान-लालू-शरद की जोड़ी से लेकर नीतीश कुमार के राजनीतिक जीवन पर लोगों की निगाहें टिकी हुईं हैं। दिलचस्प यह है कि इन चारों नेताओं को जिंदगी आज किस मोड़ पर है।
राजनीति में इन चारों में सबसे वरिष्ठ रामविलास पासवान थे। पांच जुलाई 1946 को पैदा हुए पासवान ने लॉ की डिग्री हासिल की। वर्ष 1969 में राज्य सिविल सेवा परीक्षा में चयनित होकर डीएसपी बन गए, लेकिन उन्हें राजनीति में आना था। वर्ष 1969 में पासवान ने संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी के टिकट से विधानसभा का चुनाव लड़ा और 23 वर्ष की उम्र में विधायक बन गए। जीवन में 11 चुनाव लड़े और नौ बार विजयी रहे। दो बार राज्यसभा के लिए चुने गए। खुद को राष्ट्रीय राजनीति में बनाए रखा। 70 के दशक में लालू-पासवान-शरद की जोड़ी मशहूर हो गई थी।
दो इंजीनियरों ने मचा रखा है बिहार में धमाल
73 वर्षीय शरद यादव और लालू प्रसाद यादव का पासवान के साथ गहरा तालमेल रहा है। 90 के दशक में लालू और शरद राजनीति में एक दूसरे के विपरीत ध्रुव पर चले गए थे। लालू यादव और उनके प्रभुत्व को बिहार की राजनीति में कमजोर करने के लिए शरद ने अपने राजनीतिक शिष्य नीतीश कुमार का सहारा लिया। समता पार्टी का जद (यू) में विलय कराया। वर्ष 2005 के विधानसभा चुनाव में बिहार की सत्ता पर विजय पाई। तब से नीतीश कुमार राज्य के मुख्यमंत्री हैं। यह भी संयोग है कि मध्य प्रदेश के होशंगाबाद के शरद यादव जबलपुर इंजीनियरिंग कालेज से बीटेक हैं।
वर्ष 1974 में पहली बार लोकसभा पहुंचने वाले शरद यादव का जनता दल से गहरा नाता है। गहरे समाजवादी हैं। शरद यादव की राजनीतिक कर्म भूमि मध्यप्रदेश न होकर बिहार है। शरद यादव को नीतीश कुमार का राजनीतिक गुरु माना जाता है। नीतीश कुमार ने बिहार इंजीनियरिंग कालेज (अब एनआईआईटी) पटना से इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग की पढाई की है। इस समय उनके शरद यादव से संबंध ठीक नहीं हैं। वर्ष 2015 में नीतीश, लालू को मिलाने वाले शरद अब लालू के साथ हैं।
क्लर्क ने बदली बिहार की राजनीति
जेपी आंदोलन से निकली पासवान-लालू-शरद की तिकड़ी 90 के दशक आते-आते पटना से लेकर दिल्ली तक अपनी धाक जमा चुकी थी। यह कम लोगों को पता है कि सबसे कम उम्र के युवा लालू प्रसाद यादव अपने अंदाज को लेकर उच्च शिक्षा के दिनों से ही चर्चित थे। छात्रसंघ अध्यक्ष लालू वर्ष 1977 में लोकसभा के लिए चुने गए। उससे पहले लालू प्रसाद यादव क्लर्क थे। वहीं, नीतीश कुमार बिहार इलेक्ट्रिसिटी बोर्ड में नौकरी करते थे।
वर्ष 1990 में लालू प्रसाद यादव बिहार के मुख्यमंत्री बने तो उनके करीबियों में नीतीश कुमार ही थे। लालू ने मुख्यमंत्री बनने के बाद बिहार में सामाजिक समरसता लाने में अहम भूमिका निभाई। भूरा बाल वालों का नारा, चरवाहा विद्यालय का प्रयोग करके लालू ने दबे-कुचले समाज की आवाज बन गए। वर्ष 1990 से बदली राजनीति की धारा को वर्ष 2005 तक लालू प्रसाद अपना प्रभुत्व जमाए रहे।
इनके इर्द-गिर्द ही बिहार की राजनीति
रामविलास पासवान के अस्पताल में दाखिल होने से पहले तक बिहार की राजनीति इन चारों नेताओं के इर्द गिर्द घूम रही। पॉवर गेम में ये चार ही रहे। रामविलास ने जाते-जाते अपना उत्तराधिकार बेटे चिराग को दे दिया है। चिराग ने पिता रामविलास पासवान के बनाए राजनीतिक दल लोक जनशक्ति पार्टी का झंडा उठा रखा है। लालू प्रसाद जेल जाने से पहले उत्तराधिकार पत्नी राबड़ी देवी को पकड़ाया था। उन्हें मुख्यमंत्री और राष्ट्रीय जनता दल का अध्यक्ष तक बनवाया। अब उत्तराधिकार उनके छोटे बेटे तेजस्वी संभाल रहे हैं। नीतीश कुमार अपने बेटे और परिवार को राजनीति में नहीं लाए। उनका उत्तराधिकार तय होना है। यही हाल शरद यादव का है। वह समाजवाद का जीवन जी रहे हैं। शरद की बनाई पार्टी जद (यू) अब मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की मुट्ठी में है। शरद के खाली हाथ हैं।
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