Khas Khabar-अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ दिसंबर 2019 में संबोधन करने के मामले जेल से रिहा हो चुके डॉ. कफील ने कहा कि जेल में उनका न सिर्फ मानसिक बल्कि शारीरिक उत्पीड़न भी हुआ है।
जेल से रिहा होने के बाद डॉ. कफील ने कहा कि बैरक में 40 कैदियों की क्षमता थी, लेकिन 150 कैदी रखे गए। महामारी के समय देश के प्रधानमंत्री सोशल डिस्टेंसिंग की अपील करते रहे, लेकिन जेल के अंदर नियमों की धज्जियां उड़ाई जा रही हैं। जेल में बंदियों के स्वास्थ्य को गंभीर खतरा है।
जेल में बंदी उनके बारे में पहले से जानते थे। गोरखपुर में मेडिकल कॉलेज में हुए 70 बच्चों की मौत के बारे में भी पहले से परिचित थे और बंदियों को यह भी मालूम था कि वे निर्दोष हैं। बंदियों को कथित भड़काऊ संबोधन को लेकर कुछ संशय था, लेकिन समय के साथ ही उनका वह भ्रम दूर होता गया। बंदियों का व्यवहार उनके साथ आत्मीयता पूर्ण था।
गोरखपुर मेडिकल कॉलेज में 70 बच्चों की मौत के मामले से ठीक पहले मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ मेडिकल कॉलेज आए थे। उन्होंने मेरे द्वारा मेहनत से बनाए गए आईसीयू वार्ड का निरीक्षण भी किया था। उन्होंने मेरी पीठ भी थपथपाई थी।
घटना के बाद मुख्यमंत्री के सामने मेरा प्रस्तुतीकरण राजनीतिक रंग देकर किया गया। किसी ने मुझे सपा का आदमी तो किसी ने बसपा का आदमी बताया। मेरे मामले में मुख्यमंत्री को गुमराह किया गया।
उन्होंने कहा कि मुझ पर राष्ट्रीय सुरक्षा कानून (रासुका) के तहत कार्रवाई भी सोची समझी चाल है। मैंने अलीगढ़ में सीएए के विरोध में संबोधन दिया, इसलिए नहीं, बल्कि मेरी रिहाई को रोकने की थी। मेरे बोलने से कई चेहरे बेनकाब हो जाएंगे, इसलिए मुझे किसी तरह जेल में रखने के लिए ऐसा किया गया।
डॉ. कफील ने कहा कि महामारी के समय में देश मेरी सेवाएं ले सकता था, लेकिन मुझे सेवा देने से वंचित किया गया। अब मैं जनता की सेवा करने के लिए तैयार हूं।
डॉ. कफील को समर्थन देने के लिए अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के जेएन मेडिकल कॉलेज के रेजिडेंशियल डॉक्टर एकेडमी के अध्यक्ष डॉ. हमजा मलिक सहित सभी पदाधिकारी एवं सभी छात्रों का आभार व्यक्त किया।Khas Khabar



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