Important News-अस्थमा : एक गंभीर बीमारी, आएं जानें कारण व निदान

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प्रारब्ध न्यूज ब्यूरो

Important News:मौसम में बदलाव के साथ ही बच्चों की मुश्किलें बढ़ना, अस्थमा का संकेत है। ऐसे बच्चों को खांसी-जुकाम एवं पसली चलने की शिकायत होती है। रातभर खांसते-खांसते बेहाल हो जाते हैं। बच्चों के इलाज के लिए उनके परिजन इधर-उधर भटकते हैं। बड़ी संख्या में ऐसे बच्चे इलाज के लिए सरकारी अस्पतालों से लेकर नर्सिंग होम एवं निजी क्लीनिकों में पहुंचते हैं। विशेषज्ञ चिकित्सकों का कहना है कि मौसम में बदलाव के साथ बच्चों को समस्या होना, अस्थमा (दमा) का अटैक है। इन बच्चों के इलाज में लापरवाही नहीं बरतनी चाहिए। 

सांस की बीमारी है अस्थमा

प्रदूषण एवं एलर्जी कारक तत्व जब श्वांस नलिकाओं एवं फेफड़े में पहुंच जाते हैं। अंदर जाकर रिएक्शन करते हैं, जिससे ल्यूकोट्राइन केमिकल निकलता है। इस वजह से श्वांस नलिकाओं में सूजन, आंख में जलन, आंखें लाल होना, पानी आना, नाक में सूजन व पानी आना एवं छींक आने लगती हैं। श्वांस नली में सूजन होने से संकरी हो जाती हैं, जिससे सांस लेने में दिक्कत होने से दम घुटने लगता है। इसलिए अस्थमा को सांस की बीमारी भी कहा जाता है।Important News

अस्थमा को ऐसे पहचानें 

मौसम में बदलाव यानी सर्दियों के बाद गर्मी का मौसम आने और गर्मी से बारिश का मौसम आने अथवा सर्दी के बाद गर्मी का मौसम आते समय बच्चों को बार-बार सर्दी-जुकाम होना। इसे कदापि हल्के में नहीं लेना चाहिए। ऐसे बच्चों के माता-पिता भी इन लक्षणों को दमा मानने से इन्कार करते हैं। इलाज को टालते रहते हैं। ऐसे बच्चों में दमा के लक्षण पहचान कर समय से उचित इलाज कराने से रोकथाम संभव है। 

सख्त हो जाती हैं श्वांस नलिकाएं

अस्थमा पीड़ित बच्चों का समय से इलाज नहीं कराने पर श्वांस नलिकाएं और फेफड़े की नलिकाएं सख्त हो जाती हैं। दवा चलने के बाद श्वांस नलिकाओं की ठीक ढंग से सफाई नहीं हो पाती है। अ

अस्थमा के शुरूआती लक्षण

जुकाम, नाक बंद होना, छींक आना, नाक से पानी, आंखें लाल होना।

साल दर साल बढ़ती समस्या

मौसम बदलने पर साल-दो साल जुकाम की समस्या रहती है। उसके बाद श्वांस नलिकाओं एवं फेफड़े की नलिकाओं में सूजन आने लगती है। इससे नलिकाएं संकरी हो जाती हैं, जिससे सांस लेने में दिक्कत होती है। पसली चलने (दम फूलना) की शिकायत होती है। दम फूलने से खांसी भी आने लगती है। सांस लेने पर घर्र-घर्र तथा छोड़ने पर सीटी जैसी आवाज आती है। अंत में फेफड़े की क्षमता कम हो जाती है। 

क्षतिग्रस्त हो सकते फेफड़े 

इलाज में लापरवाही से फेफड़ों में संक्रमण हो जाता है। फिर धीरे-धीरे फेफड़े क्षतिग्रस्त होने लगते हैं। 

सीओपीडी की संभावना

अस्थमा एवं एलर्जी का ठीक से इलाज नहीं कराने पर ऐसे बच्चों में आगे चलकर क्रॉनिंग आब्सट्रेक्टिव पल्मोनरी डिजीज (सीओपीडी) की संभावना अधिक रहती है। इसलिए समय से इलाज जरूरी है। 

समय से अस्थमा का इलाज जरूरी 

समय पर अस्थमा के लक्षणों को पहचान कर इलाज करने से अस्थमा को पूरी तरह नियंत्रित किया जा सकता है। दमा के लक्षण हैं तो बाल रोग विशेषज्ञ पूरी सावधानी से संर्पूण इलाज करें। चेस्ट फिजीशियन से संपर्क कर सकते हैं। इसमें लापरवाही बरतने या विलंब से इलाज कराने से जीवन पर्यांत दवाएं चलती हैं। 

अस्थमा के कारण 

- फूलों और फसलों के परागकण 
- घर की मिट्टी (डस्ट माइट) 
- धूल और धुआं 
- सॉफ्ट ट्वॉय की धूल 
- घर के परदों की धूल 
- घर में लगी वॉल हैंगिंग 
- फर्नीचर की पॉलिश 
- पालतू जानवर (कुत्ता, बिल्ली और खरगोश) के बालों की एलर्जी 

ऐसे करें बचाव
- बच्चों के सॉफ्ट ट्वॉय नियमित धोएं।
- साफ कर फ्रिजर में कुछ घंटे रखें। 
- घर के कंबल, रजाई-गद्दे, तकिया को नियमित धूप दिखाएं।  
- चादर एवं पर्दे भी सप्ताह में धोएं। 

विशेषज्ञ की राय

बढ़ता प्रदूषण, खानपान की बदलती आदतों से बच्चों की रोग प्रतिरोधक क्षमता कम हो रही है। मौसम बदलने पर बच्चों को खांसी-जुकाम और सांस लेन में दिक्कत होती है। अगर सर्दियों, गर्मियों एवं बरसात में यह समस्या हो रही है तो अस्थमा का संकेत है। बच्चे तो तत्काल विशेषज्ञ चिकित्सक को दिखाएं। समय से इलाज कराने पर इसे नियंत्रित किया जा सकता है। 

- डॉ. सुधीर चौधरी, प्रोफेसर, रेस्पेरेटरी मेडिसिन विभाग, जीएसवीएम मेडिकल कॉलेज, कानपुर।

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