विक्रम संवत : 2079
शक संवत : 1944
अयन - दक्षिणायन
ऋतु - वर्षा ऋतु
मास - आषाढ़
पक्ष - शुक्ल
तिथि - पूर्णिमा रात्रि 12:06 तक तत्पश्चात प्रतिपदा
नक्षत्र - पूर्वाषाढा रात्रि 11:18 तक तत्पश्चात उत्तराषाढा
योग - इन्द्र दोपहर 12:45 तक तत्पश्चात वैधृति
राहुकाल - दोपहर 12:44 से दोपहर 14:24 तक
सूर्योदय - 06:06*
सूर्यास्त - 19:22
दिशाशूल - उत्तर दिशा में
पंचक
पंचक का आरंभ- 15 जुलाई 2022, शुक्रवार को 28.19 मिनट से
पंचक का समापन- 20 जुलाई 2022, बुधवार को 12.51 मिनट पर।
एकादशी
कामिका एकादशी जुलाई 24, 2022, रविवार
प्रदोष
जुलाई 2022 का दूसरा प्रदोष व्रत 25 जुलाई, सोमवार को किया जाएगा। इस दिन का पूजा मुहूर्त इस प्रकार रहेगा- शाम 07:17 से रात 09:21 तक।
व्रत पर्व विवरण - व्रत पूर्णिमा, गुरुपूर्णिमा, व्यासपूर्णिमा,ʼ ऋषि प्रसादʼ जयंती, कोकिला व्रतारम्भ, सन्यासी चतुर्मासारम्भ, विद्या लाभ योग
विशेष - पूर्णिमा,और व्रत के दिन स्त्री-सहवास तथा तिल का तेल खाना और लगाना निषिद्ध है। (ब्रह्मवैवर्त पुराण, ब्रह्म खंडः 27.29-38)
गुरु पूजन
गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णुः गुरुर्देवो महेश्वरः |
गुरुर्साक्षात परब्रह्म तस्मै श्री गुरवे नमः ||
ध्यानमूलं गुरुर्मूर्ति पूजामूलं गुरोः पदम् |
मंत्रमूलं गुरोर्वाक्यं मोक्षमूलं गुरोः कृपा ||
अखंडमंडलाकारं व्याप्तं येन चराचरम् |
तत्पदं दर्शितं येन तस्मै श्री गुरवे नमः ||
त्वमेव माता च पिता त्वमेव, त्वमेव बंधुश्च सखा त्वमेव |
त्वमेव विद्या द्रविणं त्वमेव, त्वमेव सर्वं मम देव देव ||
ब्रह्मानंदं परम सुखदं केवलं ज्ञानमूर्तिं |
द्वन्द्वातीतं गगनसदृशं तत्त्वमस्यादिलक्षयम् ||
एकं नित्यं विमलं अचलं सर्वधीसाक्षीभूतम् |
भावातीतं त्रिगुणरहितं सदगुरुं तं नमामि ||
ऐसे महिमावान श्री सदगुरुदेव के पावन चरणकमलों का षोड़शोपचार से पूजन करने से साधक-शिष्य का हृदय शीघ्र शुद्ध और उन्नत बन जाता है | मानसपूजा इस प्रकार कर सकते हैं |
मन ही मन भावना करो कि हम गुरुदेव के श्री चरण धो रहे हैं।सर्वतीर्थों के जल से उनके पादारविन्द को स्नान करा रहे हैं | खूब आदर एवं कृतज्ञतापूर्वक उनके श्रीचरणों में दृष्टि रखकर ,श्रीचरणों को प्यार करते हुए उनको नहला रहे हैं।उनके तेजोमय ललाट में शुद्ध चन्दन से तिलक कर रहे हैं।अक्षत चढ़ा रहे हैं। अपने हाथों से बनाई हुई गुलाब के सुन्दर फूलों की सुहावनी माला अर्पित करके अपने हाथ पवित्र कर रहे हैं। पाँच कर्मेन्द्रियों की, पाँच ज्ञानेन्द्रियों की एवं ग्यारहवें मन की चेष्टाएँ गुरुदेव के श्री चरणों में अर्पित कर रहे हैं।
कायेन वाचा मनसेन्द्रियैवा बुध्यात्मना वा प्रकृतेः स्वभावात् |
करोमि यद् यद् सकलं परस्मै नारायणायेति समर्पयामि ||
शरीर से, वाणी से, मन से, इन्द्रियों से, बुद्धि से अथवा प्रकृति के स्वभाव से जो जो करते हैं वह सब समर्पित करते हैं | हमारे जो कुछ कर्म हैं, हे गुरुदेव, वे सब आपके श्री चरणों में समर्पित हैं। हमारा कर्त्तापन का भाव, हमारा भोक्तापन का भाव आपके श्रीचरणों में समर्पित है |
ऋइस प्रकार ब्रह्मवेत्ता सदगुरु की कृपा को, ज्ञान को, आत्मशान्ति को, हृदय में भरते हुए, उनके अमृत वचनों पर अडिग बनते हुए अन्तर्मुख हो जाओ।आनन्दमय बनते जाओ।
ॐ आनंद ! ॐ आनंद ! ॐ आनंद !
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