विक्रम संवत : 2079
शक संवत : 1944
अयन : उत्तरायण।
ऋतु : ग्रीष्म ऋतु
मास - ज्येष्ठ
पक्ष - कृष्ण
तिथि - अष्टमी सुबह 11:34 तक तत्पश्चात नवमी
नक्षत्र - शतभिषा रात्रि 10:22 तक तत्पश्चात पूर्वभाद्रपद
योग - वैधृति रात्रि 01:06 तक तत्पश्चात विष्कम्भ
राहुकाल - सुबह 07:36 से 09:16 तक
सूर्योदय - 05:56
सूर्यास्त - 07:17
दिशाशूल - पूर्व दिशा में
पंचक
पंचक का आरंभ- 22 मई 2022, रविवार को 11.13 मिनट से
पंचक का समापन- 26 मई 2022, मंगलवार को 24.39 मिनट पर।
एकादशी
गुरुवार, 26 मई 2022- अचला (अपरा) एकादशी
अमावस्या
ज्येष्ठ अमावस्या सोमवार 30 मई, 2022।
प्रदोष व्रत
27 मई शुक्रवार प्रदोष व्रत
व्रत पर्व विवरण-
विशेष - अष्टमी को नारियल का फल खाने से बुद्धि का नाश होता है। (ब्रह्मवैवर्त पुराण, ब्रह्म खंडः 27.29-34)
सफलता, सम्मान, करियर में तरक्की देने वाले ग्रह सूर्य हैं. कुंडली में सूर्य को मजबूत करने के लिए रोजाना सुबह स्नान करने के बाद सूर्य को अर्ध्य दें. हो सके तो जल में रोली, अक्षत डाल लें, इससे बेहतर फल मिलेगा. जल्द ही आपका करियर चमकेगा और आय भी बढ़ेगी.
हिंदू धर्म में तुलसी को मां लक्ष्मी का रूप माना गया है. धनवान बनने के लिए मां लक्ष्मी की कृपा जरूरी है. लिहाजा घर में तुलसी का पौधा लगाएं और रोज उसकी पूजा करें. रोज सुबह स्नान करके तुलसी को जल चढ़ाएं. शाम को तुलसी कोट में दीपक लगाएं. दीपक शांत होने के बाद उसे तुलसी कोट से हटाना न भूलें।
अहंकार, चिंता और व्यर्थ का चिंतन मिटाने का मंत्र
अहंकार, चिंता और व्यर्थ का चिंतन साधक की शक्ति को निगल जाते हैं | इनको मिटाने के लिए एक सुंदर मंत्र योगी गोरखनाथजी ने बताया है | इसमें कोई विधि – विधान नहीं है | रात को सोते समय इस मंत्र का जप करो, संख्या का कोई आग्रह नहीं है | इस मंत्र से आपके चित्त की चिंता, तनाव, खिंचाव, दिक्कतें जल्दी शांत हो जायेगी और साधन – भजन में बरकत आयेगी | मंत्र उच्चारण में थोडा कठिन जैसा लगेगा लेकिन याद रह जाने पर आसान हो जायेगा | बाहर के रोग तो बाहर की औषधि से मिट सकते हैं लेकिन भीतर के रोग बाहर की औषधि से नहीं मिटेंगे और इस मंत्र से टिकेंगे नहीं |
हमारी जो जीवनधारा है, जीवनीशक्ति है, चित्तशक्ति है उसीको उद्देश्य करके यह मंत्र है ।
ॐ चित्तात्मिकां महाचित्तिं चित्तस्वरूपिणीं आराधयामि चित्तजान रोगान शमय शमय ठं ठं ठं स्वाहा ठं ठं ठं स्वाहा |
‘हे चित्तात्मिका, महाचित्ति, चित्तस्वरूपिणी ! मैं तेरी आराधना करता हूँ | जगत – शक्तिदात्री भगवती ! मेरे चित्त के रोगों का तू शमन कर |’
‘ठं’ बीजमंत्र है, यह बड़ा प्रभाव करता है | किसीमें लोभ, किसीमें मोह, किसीमें शराब पीने का, किसीमें अहंकार का, किसीमें शेखी बधारने का दोष होता है | चित्त में दोष भरे है इसलिए तो चिंता, भय, क्रोध, अशांति है और जन्म – मरण होता है |
इसके जप से आद्यशक्ति चेतना चित्त के दोषों को दूर कर देती है, चित्त को निर्मल कर देती है | सीधे लेट गये, यह जप किया | जब तक निद्रा न आये तब तक इसका प्रयोग करें | निद्रा आने पर अपने – आप ही छूट जायेगा | रात को जप करके सोने से सुबह तुम स्वस्थ, निर्भय, प्रसन्न होकर उठोगे |
भगवान के मंत्र हों और भगवान को अपना मानकर प्रीतिपूर्वक जप करें तो चित्त भगवदाकार होकर भगवदरस से पावन हो जाता है | भगवदरस के बिना नीरसता नहीं जाती |
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