Spritual : जब शनिदेव को एक छोटे से बालक ने अपाहिज बनाया

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प्रारब्ध अध्यात्म डेस्क, लखनऊ


पुराणों में शनि देव से संबंधित एक अद्भुत सत्य वर्णित है। एक साधारण से बालक से शनि देव को अपाहिज बना दिया था।


सभी देवताओं में शनि ही एक ऐसे देवता हैं, जिनकी पूजा लगभग हर व्यक्ति करता है। पूरे जीवन काल में कम से कम एक बार शनि की साढ़ेसाती का प्रभाव हर किसी पर पड़ता है। पंचांग में शनि की दृष्टि मारक मानी जाती है। इस दृष्टि से मनुष्य नहीं देव भी डरते हैं।


पुराणों में वर्णित है कि सभी देवों में एकमात्र हनुमान जी ही हैं, जिन्होंने शनि को हराया है। इस कारण हनुमान जी की पूजा करने वाला हर मनुष्य, शनि के प्रकोप से बच जाता है। हनुमान जी के अलावा एक और शख्स है, जिससे शनि देव न सिर्फ हारे हैं बल्कि उसकी एक मारक दृष्टि ने शनि को अपाहिज बना दिया था।


पौराणिक कथाओं के अनुसार ऋषि कौशिक के पुत्र पिप्पलाद की क्रोध भरी मारक दृष्टि के प्रकोप की वजह से शनिदेव, आसमान से सीधे नीचे जमीन पर आ गिरे और उनका एक पैर टूट गया। तब से शनिदेव अपाहिज हैं।


कथा के अनुसार त्रेता युग में एक बार बहुत भयंकर अकाल पड़ा। ऋषि कौशिक भी उसकी पीड़ा से बच नहीं सके और पत्नी बच्चों सहित सुरक्षित स्थान की खोज में निकल पड़े। रास्ते में परिवार का भरण पोषण कठिन जान पड़ने पर उन्होंने अपने एक पुत्र को बीच रास्ते में ही छोड़ दिया। बालक बड़ा दुखी हुआ। एक जगह उसे पीपल का पेड़ और उसके नजदीक एक तालाब नजर आया। भूख से व्याकुल बालक उसी पीपल के पत्तों को खाकर और तालाब से पानी पीकर वहीं अपने दिन बिताने लगा।


एक दिन आकाश में गमन करते हुए ऋषि नारद की नजर उस पर पड़ी और उसके साहसी व्यक्तित्व से प्रभावित होकर उन्होंने भगवान विष्णु की पूजा विधि बता कर, पूजा करने की सलाह दी। बालक ने नित्यप्रति पूजा करते हुए, भगवान विष्णु को प्रसन्न कर लिया और उनसे जो योग एवं ज्ञान की शिक्षा लेकर महर्षि बन गया। श्री नारद ने उसका नाम  पिप्पलाद रखा।



एक दिन जिज्ञासावश महर्षि पिप्पलाद ने नारद जी से अपने बाल जीवन के कष्टों का कारण पूछा। नारद जी ने पिप्पलाद को बताया कि उसके इस दुःख का कारण शनि की मनमानी और आत्माभिमानी भरा रवैया है जिसके कारण सभी देव उससे डरते हैं। यह सुनकर पिप्पलाद को बहुत गुस्सा आया और उसने क्रोध भरी दृष्टि से आसमान में शनि को देखा।पिप्पलाद की उस क्रोध भरी नजर के प्रभाव से शनि घायल होकर जमीन पर गिर पड़े और उनका एक पैर घायल हो गया।पिप्पलाद तब भी शान्त नहीं हुए। इससे पहले वह कोई और शनि को नुकसान पहुँचाते, ब्रह्मा जी वहाँ प्रकट हुए और पिप्पलाद को बताया कि शनि विधि के विधान अनुसार अपना कर्म करतें हैं। इसमें शनि की कोई गलती नहीं है।


ब्रह्मा जी ने पिप्पलाद को आशीर्वाद दिया कि शनिवार के दिन, पिप्पलाद को ध्यान कर जो भी शनिदेव की पूजा करेगा उसे शनि के कष्टों से मुक्ति मिलेगी। तब से आज तक शनिवार के दिन, शनि ग्रह की शांति के लिए शनिदेव के साथ पीपल की पूजा का भी विधान बन गया है।

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