प्रारब्ध अध्यात्म डेस्क, लखनऊ
प्राचीन मान्यताओं के अनुसार भगवान कृष्ण के पीठ के दर्शन वर्जित हैं। आमतौर पर लोगों को यह पता नहीं है की कृष्ण भगवान की पीठ के दर्शन नहीं करना चाहिए। जब भी कृष्ण मंदिर में जाएं तो कृष्ण भगवान की मूर्ति की पीठ के दर्शन नहीं करें।
एक रोचक कथा
हमारे धार्मिक ग्रन्थों में, पीठ के दर्शन नहीं करने के सम्बन्ध में भगवान विष्णुअवतार श्री कृष्ण के बारे में एक कथा प्रचलित है। कथा के अनुसार, जब श्रीकृष्ण का जरासंध से युद्ध हो रहा था। तब जरासंध का एक साथी असुर कालयवन श्रीकृष्ण के सामने पहुंच कर उन्हें ललकारने लगा। तब श्रीकृष्ण वहां से भाग निकले। इस तरह रणभूमि से भागने के कारण उनका नाम रणछोड़ दास पड़ा।
जब श्रीकृष्ण भाग रहे थे तब कालयवन भी उनके पीछे-पीछे भागने लगा। भगवान श्रीकृष्ण इसलिए रणभूमि से भागे क्योंकि कालयवन के पिछले जन्मों के पुण्य कर्म बहुत अधिक थे। श्रीकृष्ण किसी को भी तब तक सजा नहीं देते जबतक पुण्य का बल शेष रहता है। कालयवन श्रीकृष्ण की पीठ देखते हुए भागने लगा।इस तरह उसका अधर्म बढ़ने लगा, क्योंकि भगवान की पीठ पर अधर्म का वास होता है और उसके दर्शन करने से अधर्म बढ़ता है। जब कालयवन के पुण्य कर्म का प्रभाव खत्म हो गया, तब श्रीकृष्ण एक गुफा में चले गए।
गुफा में मुचकुंद नामक राजा निद्रासन में थे। मुचकुंद को देवराज इंद्र का वरदान था कि जो भी व्यक्ति राजा को नींद से जगाएगा और राजा की नजर उस पर पड़ते ही वह भस्म हो जाएगा। कालयवन ने राजा मुचकुंद को श्रीकृष्ण समझ कर उठा दिया, जिससे राजा की निद्रा भंग हो गई। राजा की नजर जैसे ही पड़ी कालयवन वहीं पर भस्म हो गया।
अत: भगवान श्रीहरि की पीठ के दर्शन नहीं करने चाहिए, क्योंकि इससे हमारे पुण्य कर्म का प्रभाव कम होता है और अधर्म बढ़ता है। श्रीकृष्ण जी के हमेशा मुख की ओर से दर्शन करना चाहिए।
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