Ghushmeshwar Jyotirlinga : रोचक है घुश्मेश्वर ज्योतिर्लिंग के स्थापना की कहानी

0

प्रारब्ध अध्यात्म डेस्क, लखनऊ

देश ही नहीं विदेश में रह रहे भारतीय बारह ज्योतिर्लिंगों के महात्म्य की वजह से दर्शन-पूजन के लिए आते रहते हैं। ताकि पुरानी और नई पीढ़ी में अपनी धर्म, अध्यात्म और संस्कृति से जुड़ाव बना रहे। हमारी नई पीढ़ी में भी धर्म अध्यात्म में गहरी रुचि है, इसलिए केदारनाथ से लेकर रामेश्वरम ज्योतिर्लिंग के दर्शन पूजन को बारह महीनों भक्तगण का तांता लगा रहता है। आएं आपको ऐसे ही एक ज्योतिर्लिंग की रोचक कथा सुनाते हैं, कहां है और कैसे वहां पहुंचा जा सकता है। आएं जानें घुश्मेश्वर महादेव के बारे में:-

महाराष्ट्र राज्य के औरंगाबाद शहर से लगभग 29 किलोमीटर की दूर पर वेरुल नामक गांव में घुश्मेश्वर ज्योतिर्लिंग स्थापित हैं। भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों में इसे आखिरी ज्योतिर्लिंग माना जाता है।

कई ग्रंथों और पुराणों में उल्लेख है कि घुश्मेश्वर महादेव के दर्शन कर लेने मात्र से मनुष्य को जीवन का हर सुख मिल जाता है। इस ज्योतिर्लिंग को घुसृणेश्वर या घृष्णेश्वर भी कहा जाता है।

ऐसे हुई घुश्मेश्वर ज्योतिर्लिंग की स्थापना

घुश्मेश्वर ज्योतिर्लिंग की स्थापना के पीछे एक रोचक कहानी है। कहा जाता है कि दक्षिण दिशा के देवगिरी पर्वत के पास सुधर्मा नाम का एक ब्राह्मण रहता था। उसकी पत्नी का नाम सुदेहा था। उन दोनों की कोई संतान नहीं थी। संतान पाने की इच्छा से सुदेहा ने अपने पति को अपनी ही छोटी बहन घुश्मा से विवाह करने के लिए दबाव डाला। अपनी पत्नी के कहने पर सुधर्मा ने घुश्मा से विवाह कर लिया।

भगवान शिव की भक्त थी छोटी बहन

विवाह के बाद दोनों बहनें सुधर्मा के साथ प्रेम पूर्वक रहने लगीं। घुश्मा भगवान शिव की बहुत बड़ी भक्त थी, वह रोज सौ पार्थिव शिवलिंग बना कर उनकी पूजा करती और पूजा के बाद उन्हें एक सरोवर में विसर्जित कर देती थी।

पुत्र की हत्या पर भी विचलित नहीं

कुछ समय बाद जब घुश्मा को पुत्र हुआ तो सुदेहा को उससे जलन होने लगी। एक दिन मौका पाकर सुदेहा ने घुश्मा के पुत्र का वध कर दिया और उसके शव को उसी सरोवर में फेंक दिया, जहां घुश्मा अपने शिवलिंगों को विसर्जित करती थी। जब घुश्मा को अपने पुत्र की हत्या के बारे में पता चला तो भी उसका मन जरा भी विचलित नहीं हुआ। वह रोज की तरह शिवलिंग बना कर उनकी पूजा करने लगी और भगवान से अपने पुत्र को वापस पाने की कामना करने लगी।

हत्या के बाद जीवित हुआ पुत्र

पूजा के बाद जब घुश्मा शिवलिंगों को सरोवर में विसर्जित करने गई तो भगवान महादेव की कृपा से उसका पुत्र सरोवर के किनारे जीवित खड़ा था। अपने पुत्र की मृत्यु का कारण जानने पर भी घुश्मा के मन में अपनी बड़ी बहन के प्रति जरा भी क्रोध नहीं आया।

भक्त की सरलता पर स्वयं स्थापित हुए भगवान

घुश्मा की इसी सरलता और भक्ति से खुश होकर भगवान शिव ने उसे दर्शन दिए और वरदान मांगने को कहा। भगवान शिव के ऐसा कहने पर घुश्मा ने भगवान से अपनी बहन को उसके अपराध के लिए क्षमा करने की इच्छा प्रगट की तथा हमेशा के लिए इसी स्थान पर महादेव बाबा को रहने का वरदान मांगा। घुश्मा के कहने पर भगवान उसी स्थान पर घुश्मेश्वर लिंग के रूप में स्थित हो गए।

Post a Comment

0 Comments

if you have any doubt,pl let me know

Post a Comment (0)
To Top