दिनांक : 15 जून 2021, दिन : मंगलवार
विक्रम संवत : 2078 (गुजरात - 2077)
शक संवत : 1943
अयन : उत्तरायण
ऋतु : ग्रीष्म
मास : ज्येष्ठ
पक्ष - शुक्ल
तिथि - पंचमी रात्रि 10.56 तक तत्पश्चात षष्ठी
नक्षत्र - अश्लेशा रात्रि 09.42 तक तत्पश्चात मघा
योग - व्याघात सुबह 09.01 तक तत्पश्चात हर्षण
राहुकाल - शाम 04.01 से शाम 05.41 तक
दिशाशूल - उत्तर दिशा में
सूर्योदय : प्रातः 05:58 बजे
सूर्यास्त : संध्या 19:20 बजे
व्रत पर्व विवरण -
षडशीती संक्रांति (पुण्यकाल सूर्योदय से दोपहर 12.39 तक)
विशेष -
षष्ठी को नीम की पत्ती, फल या दातुन मुँह में डालने से नीच योनियों की प्राप्ति होती है।(ब्रह्मवैवर्त पुराण, ब्रह्म खंडः 27.29-34)
पंचक
28 जून प्रात: 12.57 बजे से 3 जुलाई प्रात: 6.15 बजे तक
25, जुलाई, रविवार को रात्रि 10.48 बजे से 30 जुलाई दोपहर अंत 2.03 बजे तक
एकादशी
21 जून, सोमवार : निर्जला एकादशी
5 जुलाई,सोमवार: योगिनी एकादशी
20 जुलाई- देवशयनी, हरिशयनी एकादशी
प्रदोष
22 जून, मंगलवार : भौम प्रदोष
07 जुलाई,बुद्धवार: प्रदोष व्रत
21 जुलाई,बुद्धवार: प्रदोष व्रत
अमावस्या
09 जुलाई, सुबह 5.16 बजे से 10 जुलाई, 6.46 बजे तक
07 अगस्त 7.11 बजे से 08 अगस्त 7.20 बजे तक
पूर्णिमा
24 जून, गुरूवार ज्येष्ठ पूर्णिमा
23 जुलाई , शुक्रवार आषाढ़ पूर्णिमा व्रत
22 अगस्त, रविवार- श्रावण पूर्णिमा
जिस घर में पिता और पुत्र के बीच वैचारिक मतभेद बना रहता है, वहां पिता या पुत्र किसी को भी गुड़ और गेहूं का दान मंदिर में करना चाहिए। ऐसा करने से विचार मिलने लगेंगे।
यदि आपकी अपने भाईयों के साथ बिल्कुल भी नहीं बनती तो आपको मीठी चीजों का दान अवश्य करना चाहिए। यदि संभव हो तो दूध में शहद डालकर दान अवश्य करें। आपके ऐसा करने से आप और आपके भाईयों के रिश्तों में सुधार आएगा।
मसूढ़ों की सूझन
जामुन के वृक्ष की छाल के काढ़े के कुल्ले करने से दाँतों के मसूढ़ों की सूझन मिटती है व हिल्ते दाँत मजबूत होते हैं।
वास्तु शास्त्र
यदि घर में अक्सर तनाव की स्थिति बनी रहती है तो सफेद चंदन की बनी कोई भी मूर्ति ऐसे स्थान पर रखें, जहां से सभी सदस्यों की नजर उस पर पड़े। इससे पारिवारिक तनाव खत्म होगा और सदस्यों में आपसी विश्वास बढ़ेगा।
डर लगता है तो-
किसी को डर लगता हो तो | कोई अकेले नहीं सो पाते, कोई भूत पकड़ ले तो, ऐसे बहुत कारणों से डरते हैं| तो अपने गुरुदेव को याद करे और
ॐ ॠषिकेशाय नम:. ॐ ॠषिकेशाय नम: ...ॐ ॠषिकेशाय नम:
ये जप करें | ये अग्निपुराण में अग्निदेव कहते हैं |
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