Black Fungal : ब्लैक फंगस के लिए इंडस्ट्रियल ऑक्सीजन तो नहीं जिम्मेदार

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  • देशभर के बड़े संस्थानों के विशेषज्ञ वेबिनार के जरिए लगातार ब्लैक फंगस के फैलने के कारण पर कर रहे मंथन
  • मेडिकल ग्रेड ऑक्सीजन और इंडस्ट्रियल ग्रेड ऑक्सीजन के इस्तेमाल किए जाने पर संक्रमण की जता रहे आशंका



प्रारब्ध न्यूज ब्यूरो, कानपुर


कोरोना वायरस महामारी की दूसरी लहर ने जमकर कहर बरपाया है। अब कोरोना के संक्रमण से उबरने वाले कमजोर प्रतिरोधक क्षमता (इम्यूनिटी) वाले मधुमेह (डायबिटीज), किडनी या अन्य गंभीर बीमारियों से पीड़ितों को ब्लैक फंगस (म्यूकर माइकोसिस) का संक्रमण तेजी से गिरफ्त में लेने लगा है। इस समस्या को देखते हुए देशभर के नामचीन डॉक्टरों के बीच म्यूकर माइकोसिस (जो एक प्रकार फफूंदी) का संक्रमण कैसे मरीजों तक पहुंचा और इसकी वजह पर मंथन कर रहे हैं। उन्होंने आशंका जताई है कि आनन-फानन में जान बचाने के लिए की गई ऑक्सीजन की व्यवस्था इसके लिए जिम्मेदार तो नहीं है। उनका तर्क है कि ऑक्सीजन की कमी पूरी करने के लिए औद्योगिक इकाइयों से सीधे इंडस्ट्रियल ऑक्सीजन का बंदोबस्त कराया गया, जिसमें मानकों की अनदेखी मरीजों पर भारी पड़ रही है।




देशभर के बड़े संस्थानों के विशेषज्ञ वेबिनार के जरिए लगातार ब्लैक फंगस के फैलने के कारण पर मंथन कर रहे हैं। उनका मत है कि कोरोना वायरस के संक्रमण की पहली लहर में देश में एकमात्र ब्लैक फंगस का केस रिपोर्ट हुआ था, जो दिल्ली के सर गंगा राम अस्पताल के आइसीयू का था, जबकि देश की 20 फीसद आबादी कोरोना संक्रमित हुई थी। इस बार की लहर में देश की लगभग 40 फीसद आबादी कोरोना की चपेट में आई है। आइसीयू में भर्ती गंभीर संक्रमितों के इलाज और दवाइयों का तरीका पहली और दूसरी लहर में समान है। उन्हें स्टेरॉयड, एंटी कॉग्लेंट दवाइयां और मोनो क्लोनल दवाइयां ही चलाई गईं हैं। सिर्फ अंतर है तो मेडिकल ग्रेड और इंडस्ट्रियल ग्रेड ऑक्सीजन का है। ऐसे में आशंका है जो फंगल की वजह बन रहा है।


ऑक्सीजन की खपत


41.5 फीसद संक्रमितों को पड़ी आॅक्सीजन की जरूरत (पहली लहर)

54.5 फीसद संक्रमितों को अब तक पड़ चुकी आॅक्सीजन की जरूरत (दूसरी लहर)

नोट : (इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च के आंकड़े)


एक्सपर्ट की राय



कोरोना वायरस की पिछली लहर और इस बार की लहर में संक्रमितों के इलाज में किसी प्रकार का परिवर्तन नहीं है। इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च की गाइडलाइन के अनुसार ही इलाज चल रहा है। फर्क सिर्फ ऑक्सीजन के ग्रेड में है। पहली लहर में सिर्फ मेडिकल ग्रेड ऑक्सीजन का इस्तेमाल किया गया था। इस बार बड़ी संख्या में संक्रमित होने पर ऑक्सीजन की किल्लत हो गई। ऐसे में संक्रमितों की जान बचाने के लिए बड़ी संख्या में ऑक्सीजन का इंतजाम करने में इंडस्ट्रियल ऑक्सीजन एवं उसके सिलिंडरों का इस्तेमाल करना पड़ गया।


  • प्रो. परवेज खान, विभागाध्यक्ष, नेत्र रोग, जीएसवीएम मेडिकल कॉलेज।


ऑक्सीजन उत्पादक की राय


मेडिकल ग्रेड ऑक्सीजन तैयार करने में इंडियन फार्मा स्टैंडर्ड नाॅम्स का पालन किया जाता है। शुद्धता एवं हाईजीन का विशेष ध्यान रखना पड़ता है। इसकी जांच के लिए प्लांट में लैब होना भी अनिवार्य है, क्याेंकि यह मरीजों के लिए होती है। इंडस्ट्रियल ऑक्सीजन उपयोग बेल्डिंग-कटिंग एवं अन्य उद्योग-धंधों में किया जाता है। इसलिए इसके मानक मेडिकल ग्रेड के मुकाबले शिथिल होते हैं। इसके सिलिंडरों में भी साफ-सफाई का ध्यान नहीं दिया जाता है। इस बार ऑक्सीजन की कमी होने पर मरीजों की जान बचाने के लिए सरकार के स्तर से भी मानकों में ढील दे दी गई थी।

- अजय मिश्रा, मुरारी इंडस्ट्रियल गैसेज, पनकी, कानपुर।



ऑक्सीजन के ग्रेड में अंतर


इंडस्ट्रियल ग्रेड ऑक्सीजन


- शुद्धता चेक करने की कोई व्यवस्था नहीं।

  • अॉक्सीजन की शुद्धता 97-99 फीसद के बीच।
  • रीफिल करते भरते समय एसिटिलिन व अन्य गैसों की जांच।
  • सिलिंडर में ऐसी गैसें न मिलने पर ऑक्सीजन की रीफिलिंग।
  • सिलिंडर में निगेटिव प्रेशर होने से धूल, मिट्टी व अन्य गैसें प्रवेश कर जाती।
  • सिलिंडर की गुणवत्ता चेकिंग का भी कोई प्रावधान नहीं।
  • सिलिंडर की बाहर से सफाई नहीं व पूरी तरह खुला छोड़ देना सामान्य बात है।


मेडिकल ग्रेड ऑक्सीजन


  • ऑक्सीजन की शुद्धता चेक करने के लिए प्लांट में लैब जरूरी।
  • ऑक्सीजन की शुद्धता 99.67 फीसद होनी अनिवार्य।
  • सिलिंडर में प्रेशर मेंटेन करते हैं, ताकि किसी प्रकार की गंदगी अंदर न जाए।
  • विशेष ध्यान दिया जाता है कि कार्बन डाईऑक्साइड, कार्बन माेनोआॅक्साइड, मोनो ऑक्साइड गैस मिश्रित न होने पाएं।
  • सिलिंडर रीफिल करने से पहले वैक्यूम प्रेशर से अच्छी तरह से सफाई।
  • हर पांच साल में सिलिंडर की गुणवत्ता की चेकिंग।
  • सिलिंडर की बाहरी और आंतरिक सफाई का विशेष ध्यान दिया जाता है।

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