मॉर्फिंग विंग तकनीक का ट्रायल सफल, इस तकनीक के जरिए 0.17 सेकेंड में हवा में पंख मोड़ लेंगे फाइटर जेट
प्रारब्ध न्यूज डेस्क
भारत के फाइटर जेट के पंख जल्द ही मॉर्फिंग विंग में बदलने वाले हैं। रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (DRDO) ने पहली बार मॉर्फिंग विंग तकनीक का सफल ट्रायल पूरा कर लिया है। इस अत्याधुनिक तकनीक से विमान आसमान में ही अपने पंखों का आकार बदल सकेंगे। इस तकनीक को अब तक दुनिया के सिर्फ कुछ ही उन्नत देश विकसित कर पाए हैं।
भारत के लिए इस सफलता को काफी अहम माना जा रहा है, क्योंकि इससे देश उन चुनिंदा राष्ट्रों में शामिल हो जाएगा, जिनके पास वाकई में मॉर्फिंग विंग तकनीक है। यह भारत की 6वीं पीढ़ी के लड़ाकू विमानों की ओर बड़ा कदम है। DRDO ने इस तकनीक का उपयोग ड्रोन्स (UAVs) में लगाने की भी योजना बनाई है।
आएं जानें मॉर्फिंग विंग तकनीक
मॉर्फिंग विंग तकनीक एक ऐसी तकनीक है, जिससे विमान के पंख उड़ान के दौरान अपने आकार बदल सकते हैं। इस तकनीक से विमान हर स्थिति में पंखों के आकार बदल सकता है। चाहे जब विमान टेक-ऑफ कर रहा हो, क्रूज मोड में हो या किसी लड़ाकू मिशन में हो। ताकि ड्रैग कम हो और ईंधन बच सके।
अब तक सामान्य पंखों में उड़ान के दौरान आकार नहीं बदला जा सकता था, लेकिन मॉर्फिंग विंग तकनीक में पंखों को इस तरह डिजाइन किया जात है कि उनका आकार उड़ान के दौरान बदल सके, वो भी बिना किसी आसान जॉइंट्स या खतरनाक गैप्स के। इन पंखों को लचीला बनाया गया है, जिसमें अलग-अलग हिस्से मिलकर एक समतल, चिकनी सतह बनाए रखते हैं और जरूरत के हिसाब से उसकी आकृति बदलते हैं।
ऐसे काम करती है तकनीक
इस मॉर्फिंग विंग तकनीक की नींव स्मार्ट मेटल है, विशेष रूप से Shape Memory Alloys (SMA) है। इन धातुओं की खासियत यह है कि तापमान या इलेक्टिंग करंट के प्रभाव से वे सिकुड़ या फैल सकती हैं। DRDO की इन विंग्स संरचनाओं में SMA को इस तरह से लगाया गया है कि जब भी जरूरत हो तब करंट देने पर वो सिकुड़ें और पंख का अगला किनारा झुक जाए, जिससे पंख का आकार बदल जाएगा। जब करंट बंद होगा, SMA फिर ठंडा होकर अपने पुराने रूप में लौट आता है।
DRDO ने परीक्षण के दौरान 300 मिलीमीटर के विंग मॉडल पर दिखाया कि पंख 35 डिग्री प्रति सेकेंड की गति से झुक सकते हैं और फ्लैट से पूरी तरह ‘बेंट’ स्थिति में सिर्फ 0.17 सेकेंड में आ सकते हैं। इस प्रक्रिया में विंग सतह पूरी तरह से चिकनी रहती है और किसी तरह के हिंज या जोड़ नहीं होते, जिससे हवा में गड़बड़ी कम होती है और रडार सिग्नल पकड़ने की मुश्किल बढ़ जाती है। यानी दुश्मन के लिए फाइटर जेट की रडार पकड़ना असंभव हो जाएगा।
मॉर्फिंग विंग तकनीक की खासियत
मॉर्फिंग विंग तकनीक का सबसे बड़ा फायदा यह है कि इससे विमान की ईंधन खपत कम हो जाती है। जैसे-जैसे विमान अलग-अलग उड़ान मोड में जाता है, उसके पंख अपने आकार बदलकर हवा के प्रतिरोध को कम कर देते हैं। इससे कम ईंधन खर्च होता है और विमान ज्यादा दूरी आसानी से तय कर लेता है।
इसके अलावा तकनीक का दूसरा बड़ा फायदा इसकी शानदार मैन्यूवरबिलिटी (Maneuverability) है। पंख अपने कोण और आकार को हर पल बदलते रहते हैं, जिससे विमान जरूरत पड़ने पर बहुत तेजी से मोड़ ले सकता है, तेजी से ऊपर चढ़ सकता है या अचानक नीचे आ सकता है। ऐसी फुर्ती हवाई लड़ाइयों में बेहद जरूरी होती है क्योंकि वहाँ मिलीसेकेंड का फर्क भी नतीजा बदल सकता है।
अहम बात यह है कि मॉर्फिंग विंग भविष्य के 6वीं पीढ़ी लड़ाकू विमानों की मूल जरूरत मानी जा रही है। आने वाले समय में ऐसे जेट्स को स्टील्थ, ऊर्जा-कुशल उड़ान और तेज प्रतिक्रियाओं जैसी क्षमताएँ एक साथ चाहिए होंगी। यह तकनीक इन्हें एक ही प्लेटफॉर्म पर संभव बना देती है। इसलिए DRDO का हालिया ट्रायल सिर्फ एक प्रयोग नहीं, बल्कि भारत की भविष्य की हवाई शक्ति की महत्वपूर्ण शुरुआत माना जा रहा है।
भारत के एयरोस्पेस का भविष्य बदलेगी यह तकनीक
मॉर्फिंग विंग तकनीक आने वाले समय में भारत के एयरोस्पेस का भविष्य बदलने वाली तकनीक साबित होने वाली है। क्योंकि इस तकनीक से विमान का सिर्फ डिजाइन नहीं बल्कि पूरा मॉडल बदल दिया जाएगा। यह तकनीक भारत के एयरोस्पेस को गति देगी और स्वदेशी के साथ प्रतिस्पर्धी भी बनेगी।
अभी तक भारत 4.5 और 5वीं पीढ़ी के विमानों पर काम कर रहा है लेकिन मॉर्फिंग विंग के सफल ट्रायल से यह साफ संकेत मिलता है कि भारत अब 6वीं पीढ़ी के फाइटर जेट की नींव डाल चुका है। इसके अलावा आधुनिक लड़ाइयों में ऐसे ड्रोन की जरूरत है जो चुपचाप उड़ सके, आकार बदलकर बचाव कर सकें और कम ईंधन में लंबी दूरी तय कर सकें, यह तकनीक भविष्य के UAV और UCAV कार्यक्रमों को भी बदल देगी।
इन फ्यूचर जेट्स में स्टील्थ, हाई सुपरमैन्यबवरबिलिटी, स्मार्ट कंट्रोल और फ्यूल ऑप्टिमाइजेशन अनिवार्य होंगे और मॉर्फिंग विंग इन सभी को एक ही सिस्टम में संभव बनाती है। इसीलिए यह सिर्फ एक वैज्ञानिक उपलब्धि नहीं, बल्कि भारत के एयरोस्पेस भविष्य का वह मोड़ है जो आने वाली पीढ़ियों के रक्षा प्लेटफॉर्म को दिशा देगा।



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