Homeopathy:वेद-पुराणों में निहित होम्योपैथी के सिद्धांत

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प्रारब्ध न्यूज़ ब्यूरो, लखनऊ 


होम्योपैथिक एजुकेशनल एंड डेवलपमेन्ट सोसाइटी एवं इंडियन सोसाइटी आफ होम्योपैथी के तत्वावधान में अटल बिहारी साइंटिफिक कन्वेंशन सेंटर, किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी, लखनऊ में आयोजित दो दिवसीय 10वीं नेशनल होम्योपैथिक कांफ्रेंस -2025 में कानपुर के प्रतिष्ठित होम्योपैथिक चिकित्सक डॉ. बीएन आचार्य को होम्योपैथिक लाइफ टाइम अचीवमेंट अवार्ड से सम्मानित किया गया। इस मौके पर डॉ. बीएन आचार्य ने अपने शोध पत्र के माध्यम से कहा कि भारतीय धर्म ग्रंथों  के सन्दर्भ से ये बताया गया कि होम्योपैथी के सिद्धांत प्राचीन काल से वेद, पुराणों मे निहित हैं।


कॉन्फ्रेंस के पहले दिन डॉ. बीएन आचार्य ने अपना शोध पत्र प्रस्तुत करते हुए होम्योपैथी को लेकर भारतीय धर्म ग्रंथों के सन्दर्भ से बताया गया कि होम्योपैथी के सिद्धांत प्राचीन काल से वेद, पुराणों मे निहित हैं। होम्योपैथी आयुर्वेद की तदर्थ कारी चिकित्सा के नाम से प्रचलित थी, जो विदेशी शासकों द्वारा एलोपैथिक चिकित्सा लादे जाने के कारण लुप्तप्राय हो गई। बाद में जर्मन चिकित्सक डॉ. हैंनीमैन् ने उसे पुनर्नस्थापित किया और उसे होम्योपैथी नाम दिया।


डॉ. आचार्य ने यह भी बताया कि होम्योपैथी भारत के लिए सबसे उपयुक्त उपचार प्रणाली है, क्योंकि ये भारतीय मूल्यों जैसे अहिंसा पर आधारित है। इसमें मीठी गोलियों और ड्राप्स के माध्यम से दवाई दी जातीं हैं जो बच्चे, बूढ़े और जवान सभी आसानी से लें सकते हैं। दवाई का कोई साइड इफ़ेक्ट भी नहीं होता और रोगी को जड़ से रोग से मुक्ति मिल जाती है। सबसे अच्छी बात ये है कि सभी उपचार प्रणालियों एलोपैथी, आयुर्वेद और यूनानी की अपेक्षाकृत यह कम खर्चीली है |

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