प्रारब्ध न्यूज़ ब्यूरो - अध्यात्म
पौराणिक कथाओं के अनुसार श्री हनुमान जी के जन्म के बारह घंटे के बाद उन्हें बहुत जोरों की भूख लगी।उस समय सूर्य देव उदय हो रहे थे।सूर्य देव लाल रंग की तरह दिख रहे धे।उन्होंने एक फल समझाऔर उसका भक्षण कर लिया।
मंगलमय कपि मंगलकारी मंगल मारूति पूत,
सकल सिद्धि कर कमल तल,विमल बुद्धि प्रभु दूत।
बाल हनुमान का सूर्य को फल समझने का कारण
पूर्व कल्प की बात है कि भगवान शिव के ग्यारहवें रुद्र"हर", माँ भुवनेश्वरी की तपस्या में लीन थे।माता भुवनेश्वरी, श्री हर की तपस्या से खुश हुईं और बारह कलाओं से पूर्ण बारह आम के फल दिए और कहा कि इनको भक्षण करने से अदभुत तेज प्राप्त होगा।आप जब चाहेंगे सूर्य बनकर ब्रम्हांड को प्रकाशित कर सकतें हैं।अंधेरा आप के आगे नहीं टिकेगा।
श्रीहर ने उन फलों को लाकर एक जगह रख दिया और सोचा की संध्या वंदन करने के पश्चात इन फलों को खा लूंगा। श्रीहर संध्या वंदन करने लगे, इतने में सूर्य देव आ गए और उन फलों का भक्षण कर लिया। श्रीहर की तपस्या का फल सूर्यदेव खा गए।
श्रीहर को क्रोध आ गया और उन्होंने सूर्य को श्राप दिया कि तुमने चोरी से मेरे फलों को खाया है,अगले हनुमान अवतार में, मैं सम्पूर्ण श्रष्टि के सामने तुम्हारा भक्षण करके माता के दिए इस तेजज को प्राप्त करूंगा।
इसलिए श्रीहर रूपी हनुमान जी ने सूर्य का भक्षण किया।
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