Prarabdh Dharm-Aadhyatm : आज का पंचांग (25 अक्टूबर 2021)

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25 अक्टूबर, दिन : सोमवार


विक्रम संवत : 2078 (गुजरात - 2077)


शक संवत : 1943


अयन : दक्षिणायन


ऋतु : शरद


मास - कार्तिक (गुजरात एवं महाराष्ट्र के अनुसार अश्विन)


पक्ष -  कृष्ण


तिथि - चतुर्थी रात्रि 25 अक्टूबर प्रातः 05:43 तक तत्पश्चात पंचमी


नक्षत्र - रोहिणी रात्रि 01:02 तक तत्पश्चात मृगशिरा


योग - वरीयान रात्रि 12:35 तक तत्पश्चात परिघ


राहुकाल - शाम 04:41 से शाम 06:08 तक


सूर्योदय - 06:38

 

सूर्यास्त - 18:06


दिशाशूल - पश्चिम दिशा में


पंचक


12 नवंबर 2021 से 16 नवंबर 2021 तक। 


09 दिसंबर 2021 से 14 दिसंबर 2021 तक।


एकादशी 


01 नवंबर : रमा एकादशी


14 नवंबर : देवुत्थान एकादशी


30 नवंबर : उत्पन्ना एकादशी


14 दिसंबर : मोक्षदा एकादशी


30 दिसंबर : सफला एकादशी


प्रदोष


02 नवंबर : भौम प्रदोष


16 नवंबर : भौम प्रदोष


02 दिसंबर : प्रदोष व्रत


31 दिसंबर : प्रदोष व्रत


पूर्णिमा


18 नवंबर : कार्तिक पूर्णिमा


18 दिसंबर : मार्गशीर्ष पूर्णिमा


अमावस्या


04 नवम्बर : कार्तिक अमावस्या


04 दिसम्बर : मार्गशीर्ष अमावस्या


व्रत पर्व विवरण - करवा चौथ, दाशरथी- करक चतुर्थी, संकट चतुर्थी (चंद्रोदय : रात्रि 08:39)


विशेष


चतुर्थी को मूली खाने से धन का नाश होता है।(ब्रह्मवैवर्त पुराण, ब्रह्म खंडः 27.29-34)


कोई कष्ट हो तो


हमारे जीवन में बहुत समस्याएँ आती रहती हैं, मिटती नहीं हैं। कभी कोई कष्ट, कभी कोई समस्या। ऐसे लोग शिवपुराण में बताया हुआ एक प्रयोग कर सकते हैं कि, कृष्ण पक्ष की चतुर्थी (मतलब पूर्णिमा के बाद की चतुर्थी ) आती हैं। उस दिन सुबह छः मंत्र बोलते हुये गणपतिजी को प्रणाम करें कि हमारे घर में ये बार-बार कष्ट और समस्याएं आ रही हैं वो नष्ट हों।


छः मंत्र इस प्रकार हैं:-


ॐ सुमुखाय नम: : सुंदर मुख वाले; हमारे मुख पर भी सच्ची भक्ति प्रदान सुंदरता रहे।


ॐ दुर्मुखाय नम: : मतलब भक्त को जब कोई आसुरी प्रवृत्ति वाला सताता है तो… भैरव देख दुष्ट घबराये।

ॐ मोदाय नम: : मुदित रहने वाले, प्रसन्न रहने वाले। उनका सुमिरन करने वाले भी प्रसन्न हो जायें।


ॐ प्रमोदाय नम: : प्रमोदाय; दूसरों को भी आनंदित करते हैं । भक्त भी प्रमोदी होता है और अभक्त प्रमादी होता है, आलसी । आलसी आदमी को लक्ष्मी छोड़ कर चली जाती है । और जो प्रमादी न हो, लक्ष्मी स्थायी होती है।


ॐ अविघ्नाय नम:

ॐ विघ्नकरत्र्येय नम:

 

कार्तिक में दीपदान (गताअंक से आगे...)


दीपदान कहाँ करें


देवालय (मंदिर) में, गौशाला में, वृक्ष के नीचे, तुलसी के समक्ष, नदी के तट पर, सड़क पर, चौराहे पर, ब्राह्मण के घर में, अपने घर में।


अग्निपुराण के 200 वे अध्याय के अनुसार


देवद्विजातिकगृहे दीपदोऽब्दं स सर्वभाक्


जो मनुष्य देवमन्दिर अथवा ब्राह्मण के गृह में दीपदान करता है, वह सबकुछ प्राप्त कर लेता है। पद्मपुराण के अनुसार मंदिरों में और नदी के किनारे दीपदान करने से लक्ष्मी जी प्रसन्न होती हैं। दुर्गम स्थान अथवा भूमि पर दीपदान करने से व्यक्ति नरक जाने से बच जाता है।


जो देवालय में, नदी के किनारे, सड़क पर दीप देता है, उसे सर्वतोमुखी लक्ष्मी प्राप्त होती है। कार्तिक में प्रतिदिन दो दीपक जरूर जलाएं। एक श्रीहरि नारायण के समक्ष तथा दूसरा शिवलिंग के समक्ष।


पद्मपुराण के अनुसार


तेनेष्टं क्रतुभिः सर्वैः कृतं तीर्थावगाहनम्। 

दीपदानं कृतं येन कार्तिके केशवाग्रतः।।


जिसने कार्तिक में भगवान् केशव के समक्ष दीपदान किया है, उसने सम्पूर्ण यज्ञों का अनुष्ठान कर लिया और समस्त तीर्थों में गोता लगा लिया।


ब्रह्मवैवर्त पुराण में कहा गया है जो कार्तिक में श्रीहरि को घी का दीप देता है, जितने पल दीपक जलता है, उतने वर्षों तक वह हरिधाम में आनन्द भोगता है। फिर अपनी योनि में आकर विष्णुभक्ति पाता है। महाधनवान नेत्र की ज्योति से युक्त तथा दीप्तिमान होता है।


स्कन्दपुराण माहेश्वरखण्ड-केदारखण्ड के अनुसार


ये दीपमालां कुर्वंति कार्तिक्यां श्रद्धयान्विताः॥

यावत्कालं प्रज्वलंति दीपास्ते लिंगमग्रतः॥

तावद्युगसहस्राणि दाता स्वर्गे महीयते॥


जो कार्तिक मास की रात्रि में श्रद्धापूर्वक शिवजी के समीप दीपमाला समर्पित करता है, उसके चढ़ाये गए वे दीप शिवलिंग के सामने जितने समय तक जलते हैं, उतने हजार युगों तक दाता स्वर्गलोक में प्रतिष्ठित होता है।


लिंगपुराण के अनुसार


कार्तिके मासि यो दद्याद्धृतदीपं शिवाग्रतः।।

संपूज्यमानं वा पश्येद्विधिना परमेश्वरम्।।


जो कार्तिक महिने में शिवजी के सामने घृत का दीपक समर्पित करता है अथवा विधान के साथ पूजित होते हुए परमेश्वर का दर्शन श्रद्धापूर्वक करता है, वह ब्रह्मलोक को जाता है।


यो दद्याद्धृतदीपं च सकृल्लिंगस्य चाग्रतः।।

स तां गतिमवाप्नोति स्वाश्रमैर्दुर्लभां रिथराम्।।


जो शिव के समक्ष एक बार भी घृत का दीपक अर्पित करता है, वह वर्णाश्रमी लोगों के लिये दुर्लभ स्थिर गति प्राप्त करता है।


आयसं ताम्रजं वापि रौप्यं सौवर्णिकं तथा।।

शिवाय दीपं यो दद्याद्विधिना वापि भक्तितः।।

सूर्यायुतसमैः श्लक्ष्णैर्यानैः शिवपुरं व्रजेत्।।


जो विधान के अनुसार भक्तिपूर्वक लोहे, ताँबे, चाँदी अथवा सोने का बना हुआ दीपक शिव को समर्पित है, वह दस हजार सूर्यों के सामान देदीप्यमान विमानों से शिवलोक को जाता है।


अग्निपुराण के 200 वे अध्याय के अनुसार


जो मनुष्य देवमन्दिर अथवा ब्राह्मण के गृह में एक वर्ष दीपदान करता है, वह सबकुछ प्राप्त कर लेता है।कार्तिक में दीपदान करने वाला स्वर्गलोक को प्राप्त होता है। दीपदान से बढ़कर न कोई व्रत है, न था और न होगा ही। दीपदान से आयु और नेत्रज्योति की प्राप्ति होती है। दीपदान से धन और पुत्रादि की प्राप्ति होती है। दीपदान करने वाला सौभाग्ययुक्त होकर स्वर्गलोक में देवताओं द्वारा पूजित होता है। एकादशी को दीपदान करने वाला स्वर्गलोक में विमान पर आरूढ़ होकर प्रमुदित होता है।


दीपदान कैसे करें


मिट्टी, ताँबा, चाँदी, पीतल अथवा सोने के दीपक लें। उनको अच्छे से साफ़ कर लें। मिटटी के दीपक को कुछ घंटों के लिए पानी में भिगो कर सुखा लें। उसके पश्च्यात प्रदोषकाल में अथवा सूर्यास्त के बाद उचित समय मिलने पर दीपक, तेल, गाय घी, बत्ती, चावल अथवा गेहूँ लेकर मंदिर जाएँ। घी में रुई की बत्ती तथा तेल के दीपक में लाल धागे या कलावा की बत्ती इस्तेमाल कर सकते हैं। दीपक रखने से पहले उसको चावल अथवा गेहूं अथवा सप्तधान्य का आसन दें। दीपक को भूल कर भी सीधा पृथ्वी पर न रखें क्योंकि कालिका पुराण का कथन है।


दातव्यो न तु भूमौ कदाचन।

सर्वसहा वसुमती सहते न त्विदं द्वयम्।।


अकार्यपादघातं च दीपतापं तथैव च। 

तस्माद् यथा तु पृथ्वी तापं नाप्नोति वै तथा।।


अर्थात सब कुछ सहने वाली पृथ्वी को अकारण किया गया पदाघात और दीपक का ताप सहन नही होता।

उसके बाद एक तेल का दीपक शिवलिंग के समक्ष रखें और दूसरा गाय के घी का दीपक श्रीहरि नारायण के समक्ष रखें। उसके बाद दीपक मंत्र पढ़ते हुए दोनों दीप प्रज्वलित करें। दीपक को प्रणाम करें। दारिद्रदहन शिवस्तोत्र तथा गजेन्द्रमोक्ष का पाठ करें।

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