Prarabdh Dharm-Aadhyatm : आज का पंचांग एवं व्रत-त्योहार (24 मई, 2021)

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दिनांक : 24 मई 2021, दिन : सोमवार


विक्रम संवत : 2078 (गुजरात - 2077)


शक संवत : 1943


अयन : उत्तरायण


ऋतु : ग्रीष्म


मास : वैशाख


पक्ष : शुक्ल


तिथि : त्रयोदशी रात्रि 12:11 बजे तक तत्पश्चात चतुर्दशी


नक्षत्र : चित्रा सुबह 09:49 बजे तक तत्पश्चात स्वाती


योग : व्यतिपात सुबह 11:14 बजे तक तत्पश्चात वरीयान्


राहुकाल : सुबह 07:37 बजे से सुबह 09:17 बजे तक 


दिशाशूल : पूर्व दिशा में


सूर्योदय : प्रातः 05:59 बजे


सूर्यास्त : संध्या 19:12 बजे


व्रत पर्व विवरण  : सोमप्रदोष व्रत

विशेष 

त्रयोदशी को बैंगन खाना मना होता है। (ब्रह्मवैवर्त पुराण, ब्रह्म खंडः 27.29-34)


पंचक


01 जून रात्रि 3.57 बजे से 05 जून रात्रि 11.27 बजे तक


28 जून प्रात: 12.57 बजे से 3 जुलाई प्रात: 6.15 बजे तक


व्रत-त्योहार विवरण


एकादशी


06 जून, रविवार : अपरा एकादशी


21 जून, सोमवार : निर्जला एकादशी


प्रदोष


24 मई, सोमवार : सोम प्रदोष व्रत


07 जून, सोमवार : सोम प्रदोष व्रत


22 जून, मंगलवार : भौम प्रदोष


अमावस्या


10 जून, बृहस्पतिवार : ज्येष्ठ अमावस्या


पूर्णिमा


26 मई, बुधवार : बुद्ध पूर्णिमा


वैशाख मास की अंतिम तीन तिथि

वैशाख मास की अंतिम तीन तिथि का महत्व (24, 25 एवं 26 मई 2021)

स्कन्दपुराण के वैष्णव खण्ड के अनुसार
 
यास्तिस्रस्तिथयः पुण्या अंतिमाः शुक्लपक्षके ।। वैशाखमासि राजेंद्र पूर्णिमांताः शुभावहाः ।।
अन्त्याः पुष्करिणीसंज्ञाः सर्वपापक्षयावहाः ।। माधवे मासि यः पूर्णं स्नानं कर्त्तुं न च क्षमः ।।
तिथिष्वेतासु स स्नायात्पूर्ण मेव फलं लभेत् ।। सर्वे देवास्त्रयोदश्यां स्थित्वा जंतून्पुनंति हि ।।
पूर्णायाः पर्वतीर्थैश्च विष्णुना सह संस्थिताः ।। चतुर्दश्यां सयज्ञाश्च देवा एतान्पुनंति हि ।।
 
वैशाख मास की अंतिम तीन तिथि (त्रियोदशी, चतुर्दशी, पूर्णिमा) बहुत पवित्र और शुभकारक हैं उनका नाम "पुष्करिणी" है। ये सब पापों का क्षय करनेवाली हैं जो सम्पूर्ण वैशाख मास में ब्राम्हमुहूर्त में पुण्यस्नान, व्रत, नियम आदि करने में असमर्थ हों, वह यदि इन ३ तिथियों में भी उसे करें तो वैशाख मास का पूरा फल पा लेता है

ब्रह्मघ्नं वा सुरापं वा सर्वानेतान्पुनंति हि।।
एकादश्यां पुरा जज्ञे वैशाख्याममृतं शुभम्।।
द्वादश्यां पालितं तच्च विष्णुना प्रभविष्णुना।।
त्रयोदश्यां सुधां देवान्पाययामास वै हरिः।।
जघान च चतुर्दश्यां दैत्यान्देवविरोधिनः।।
पूर्णायां सर्वदेवानां साम्राज्याऽऽप्तिर्बभूव ह।।
ततो देवाः सुसंतुष्टा एतासां च वरं ददुः।।
तिसृणां च तिथीनां वै प्रीत्योत्फुल्लविलोचनाः।।
एता वैशाख मासस्य तिस्रश्च तिथयः शुभाः।। पुत्रपौत्रादिफलदा नराणां पापहानिदाः।।
योऽस्मिन्मासे च संपूर्णे न स्नातो मनुजाधमः।।
तिथित्रये तु स स्नात्वा पूर्णमेव फलं लभेत्।।
तिथित्रयेप्यकुर्वाणः स्नानदानादिकं नरः।।
चांडालीं योनिमासाद्य पश्चाद्रौरवमश्नुते।।

पूर्वकाल में वैशाख शुक्ल एकादशी को शुभ अमृत प्रकट हुआ। द्वादशी को भगवान विष्णु ने उसकी रक्षा की। त्रयोदशी को उन श्री हरि ने देवताओं को सुधापान कराया। चतुर्दशी को देवविरोधी दैत्यों का संहार किया और पूर्णिमा के दिन समस्त देवताओं को उनका साम्राज्य प्राप्त हो गया। इसलिए देवताओं ने संतुष्ट होकर इन तीन तिथियों को वर दिया :- 

“वैशाख की ये तीन शुभ तिथियाँ मनुष्यों के पापों का नाश करने वाली तथा उन्हें पुत्र-पौत्रादि फल देनेवाली हों। जो सम्पूर्ण वैशाख में प्रात: पुण्य स्नान न कर सका हो, वह इन तिथियों में उसे कर लेने पर पूर्ण फल को ही पाता है। वैशाख में लौकिक कामनाओं को नियंत्रित करने पर मनुष्य निश्चय ही भगवान विष्णु का सायुज्य प्राप्त कर लेता है।”

गीतापाठं तु यः कुर्यादंतिमे च दिनत्रये ।। दिनेदिनेऽश्वमेधानां फलमेति न संशयः ।।

जो वैशाख मास में अंतिम ३ दिन ‘गीता’ का पाठ करता है, उसे प्रतिदिन अश्वमेध यज्ञ का फल मिलता है

सहस्रनामपठनं यः कुर्य्याच्च दिनत्रये।।
तस्य पुण्यफलं वक्तुं कः शक्तो दिवि वा भुवि।।

जो इन तीनों दिन ‘श्रीविष्णुसहस्रनाम’ का पाठ करता है,  उसके पुण्यफल का वर्णन करने में तो इस भूलोक व स्वर्गलोक में कौन समर्थ है जो इन तीन दिन विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ करता है उसके पुण्यफल की व्याख्या करने में पृथ्वीलोक तथा स्वर्गलोक में कोई समर्थ नहीं।

सहस्रनामभिर्देवं पूर्णायां मधुसूदनम्।।
पयसा स्नाप्य वै याति विष्णुलोकमकल्मषम्।।

जो वैशाख पूर्णिमा को सहस्रनामों के द्वारा भगवान् मधुसूदन को दूध से स्नान कराता है वो वैकुण्ठ धाम को जाता है।

यो वै भागवतं शास्त्रं शृणोत्येतद्दिनत्रये।।
न पापैर्लिप्यते क्वाऽपि पद्मपत्रमिवांभसा।।

जो वैशाख के अंतिम ३ दिनों में ‘भागवत’ शास्त्र का श्रवण करता है, वह जल में कमल के पत्तों की भांति कभी पापों में लिप्त नहीं होता

देवत्वं मनुजैः प्राप्तं कैश्चित्सिद्धत्वमेव च।।
कैश्चित्प्राप्तो ब्रह्मभावो दिनत्रयनिषेवणात्।।

इन अंतिम ३ दिनों में शास्त्र-पठन व पुन्य्कर्मों से कितने ही मनुष्यों ने देवत्व प्राप्त कर लिया और कितने ही सिद्ध हो गये अत: वैशाख के अंतिम दिनों में स्नान, दान, पूजन अवश्य करना चाहिए

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