दशहरा : बिना मुहूर्त के मुहूर्त !

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प्रारब्ध अध्यात्म डेस्क, लखनऊ


विजयादशमी का दिन बहुत महत्त्व का है। इस दिन सूर्यास्त के पूर्व से लेकर तारे निकलने तक का समय अर्थात् संध्या का समय बहुत उपयोगी है। रघु राजा ने इसी समय कुबेर पर चढ़ाई करने का संकेत कर दिया था कि ‘सोने की मुहरों की वृष्टि करो या तो फिर युद्ध करो।’ रामचन्द्रजी रावण के साथ युद्ध में इसी दिन विजयी हुए। ऐसे ही इस विजयादशमी के दिन अपने मन में जो रावण के विचार हैं काम, क्रोध, लोभ, मोह, भय, शोक, चिंता – इन अंदर के शत्रुओं को जीतना है। इस प्रकार रोग, अशांति जैसे बाहर के शत्रुओं पर भी विजय हासिल करनी है। दशहरा यही संदेश हमसभी को देता है।


स्वयंसिद्ध मुहूर्त : कोई शुभ कार्य संभव


विजयादशमी का पूरा दिन स्वयंसिद्ध मुहूर्त है अर्थात इस दिन कोई भी शुभ कर्म करने के लिए पंचांग-शुद्धि या शुभ मुहूर्त देखने की आवश्यकता नहीं रहती। इसलिए दशहरे के दिन कोई भी वीरतापूर्ण काम करने वाला सफल होता है। इसलिए अपनी सीमा के पार जाकर औरंगजेब के दाँत खट्टे करने के लिए छत्रपति शिवाजी ने दशहरे का दिन चुना था।


शमी वृक्ष पर स्वर्णमुद्राओं की वृष्टि


वरतंतु ऋषि का शिष्य कौत्स विद्याध्ययन समाप्त करके जब घर जाने लगा तो उसने अपने गुरुदेव से गुरूदक्षिणा के लिए निवेदन किया। तब गुरुदेव ने कहाः वत्स ! तुम्हारी सेवा ही मेरी गुरुदक्षिणा है। तुम्हारा कल्याण हो।’ परंतु कौत्स के बार-बार गुरुदक्षिणा के लिए आग्रह करते रहने पर ऋषि ने क्रुद्ध होकर कहाः ‘तुम गुरूदक्षिणा देना ही चाहते हो तो चौदह करोड़ स्वर्णमुद्राएँ लाकर दो।” अब गुरुजी ने आज्ञा की है। इतनी स्वर्णमुद्राएँ और तो कोई देगा नहीं, रघु राजा के पास गये। रघु राजा ने इसी दिन को चुना और कुबेर को कहाः “या तो स्वर्णमुद्राओं की बरसात करो या तो युद्ध के लिए तैयार हो जाओ।” कुबेर ने शमी वृक्ष पर स्वर्णमुद्राओं की वृष्टि की। रघु राजा ने वह धन ऋषिकुमार को दिया लेकिन ऋषिकुमार ने अपने पास नहीं रखा, ऋषि को दिया।


शमी वृक्ष के पूजन का महात्म


विजयादशमी के दिन शमी वृक्ष का पूजन किया जाता है। उसके पत्ते देकर एक-दूसरे को यह याद दिलाना होता है कि सुख बाँटने की चीज है और दुःख पैरों तले कुचलने की चीज है। धन-सम्पदा अकेले भोगने के लिए नहीं है। तेन त्यक्तेन भुंजीथा….। जो अकेले भोग करता है, धन-सम्पदा उसको ले डूबती है।


भोगवादी प्रवृति से बचें


भोगवादी, दुनिया में विदेशी ‘अपने लिए–अपने लिए….’ करते हैं। इसलिए ‘व्हील चेयर’ पर और ‘हार्ट अटैक’ आदि बीमारियों से मरते हैं। अमेरिका में 58 प्रतिशत को सप्ताह में कभी-कभी अनिद्रा सताती है। 35 प्रतिशत को हर रोज अनिद्रा सताती है। भारत में अनिद्रा का प्रमाण 10 प्रतिशत भी नहीं है क्योंकि यहाँ सत्संग है। त्याग, परोपकार से जीने की कला है। यह भारत की महान संस्कृति का फल हमें मिल रहा है।


ॐकार के जप से संभव देवदर्शन


दशहरे की संध्या को भगवान को प्रीतिपूर्वक भजे और प्रार्थना करें कि ‘हे भगवान ! जो चीज सबसे श्रेष्ठ है उसी में हमारी रूचि करना।’ संकल्प करना कि’आज प्रतिज्ञा करते हैं कि हम ॐकार का जप करेंगे।’ ॐ’ का जप करने से देवदर्शन, लौकिक कामनाओं की पूर्ति, आध्यात्मिक चेतना में वृद्धि, साधक की ऊर्जा एवं क्षमता में वृद्धि और जीवन में दिव्यता तथा परमात्मा की प्राप्ति होती है।


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