Special Child: इन बच्चों की क्षमता पहचानने की है जरूरत

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प्रारब्ध न्यूज ब्यूरो, गाजियाबाद 


हर बच्चा दुनिया में अनोखी चमक लेकर आता है। कोई अपनी प्रतिभा से, कोई अपने विचारों से और कोई अपने निश्छल हृदय से, लेकिन कुछ बच्चे ऐसे होते हैं, जिनकी यात्रा दूसरों से अलग होती है। ये बच्चे अपने ढंग से सीखते, सोचते और दुनिया को महसूस करते हैं, जिन्हें हम स्पेशल चाइल्ड कहते हैं। परंतु अफसोस की बात यह है कि आज भी समाज का बड़ा हिस्सा इन्हें “कमज़ोर”, “बीमार” या “अलग” मानता है। सच्चाई यह है कि ये बच्चे कमज़ोर नहीं, बल्कि अद्वितीय हैं। उनकी क्षमताएं सिर्फ हमें पहचानने की जरूरत है। ऐसे बच्चों को लेकर स्पेशल चाइल्ड एक्सपर्ट गाजियाबाद स्थित न्यू होप एकेडमी की संचालिका अपर्णा गुप्ता से विशेष बातचीत की। उनका मानना है कि विशेष बच्चों के प्रति समाज की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण है। समाज को इन बच्चों के प्रति अपनी सोच में बदलाव लाना होगा।

अपर्णा गुप्ता कहती हैं कि जब किसी परिवार में ऑटिज़्म, डाउन सिंड्रोम, डिस्लेक्सिया या अन्य किसी विशेष ज़रूरत वाला बच्चा होता है, तो समाज अक्सर सवाल करता है- “क्या ये ठीक होगा?” या “क्यों ऐसा हुआ?” लेकिन हमें यह पूछना चाहिए-“हम इस बच्चे के साथ कैसे खड़े हो सकते हैं?” हर बच्चा समाज का हिस्सा है। विशेष ज़रूरत वाले बच्चों को स्वीकार करना और उन्हें समाज का अभिन्न हिस्सा मानना ही हमारी जिम्मेदारी है। हमें यह सुनिश्चित करना चाहिए कि हर बच्चा, चाहे उसकी ज़रूरतें कैसी भी हों, अपने अधिकारों का अनुभव कर सके। इस दिशा में कदम उठाना न केवल बच्चों के लिए, बल्कि समाज के लिए भी आवश्यक है। 


माता-पिता बच्चे की सबसे बड़ी ताकत

अपर्णा गुप्ता कहती हैं कि विशेष बच्चे के जीवन में माता-पिता की भूमिका सबसे महत्वपूर्ण होती है। उन्हें समाज की नकारात्मक बातों से डरने के बजाय अपने बच्चे पर विश्वास रखना चाहिए। बच्चे को समझना, उसे प्रोत्साहित करना और उसकी क्षमताओं को पहचानना चाहिए। माता-पिता को चाहिए कि वे अपने बच्चे के प्रति सकारात्मक दृष्टिकोण अपनाएं और उसकी विशेषताओं को सराहें। समाज को भी इन परिवारों के साथ खड़ा होना चाहिए, न कि उन्हें अलग या "बेचारा" समझना चाहिए। एक मुस्कान, एक सराहना या एक छोटा सहयोग भी बहुत बड़ा अंतर ला सकता है। जब समाज विशेष बच्चों और उनके परिवारों का समर्थन करता है, तो यह न केवल बच्चों के आत्मविश्वास को बढ़ाता है, बल्कि उनके विकास में भी सहायक होता है। इस प्रकार, माता-पिता और समाज दोनों की जिम्मेदारी हैं कि वे विशेष बच्चों को एक सकारात्मक वातावरण प्रदान करें, जहां वे अपनी क्षमताओं को पहचान सकें और उन्हें विकसित कर सकें। यह न केवल बच्चों के लिए, बल्कि समाज के लिए भी एक महत्वपूर्ण कदम है, जिससे हम एक समावेशी और सहायक समाज का निर्माण कर सकते हैं। इस दिशा में उठाए गए छोटे-छोटे कदम भी बड़े बदलाव का कारण बन सकते हैं। 



मीडिया और समाज की भूमिका

  
आज के समय में मीडिया, सोशल मीडिया और शिक्षा संस्थानों की जिम्मेदारी अत्यधिक बढ़ गई है। हमें विशेष बच्चों की कहानियों को प्रेरणा के रूप में प्रस्तुत करना आवश्यक है, ताकि समाज उन्हें “अलग” नहीं बल्कि “अद्वितीय” के रूप में देख सके। फिल्मों, धारावाहिकों और लेखों में ऐसे बच्चों को सशक्त रूप में दर्शाया जाना चाहिए। जब समाज उनकी क्षमताओं को पहचानेगा, तब दया की जगह सम्मान का भाव उत्पन्न होगा। विशेष बच्चों की कहानियाँ केवल उनके संघर्षों को नहीं, बल्कि उनकी उपलब्धियों को भी उजागर करेंगी। यह आवश्यक है कि हम समाज में सकारात्मक बदलाव लाने के लिए ऐसे बच्चों की प्रतिभाओं को मान्यता दें। मीडिया को चाहिए कि वह इन बच्चों की कहानियों को व्यापक रूप से फैलाए, ताकि समाज में उनके प्रति जागरूकता बढ़े। शिक्षा संस्थानों को भी इस दिशा में सक्रिय भूमिका निभानी चाहिए। उन्हें विशेष बच्चों के लिए समावेशी पाठ्यक्रम विकसित करने चाहिए, जिससे वे अपनी क्षमताओं को पहचान सकें और समाज में अपनी जगह बना सकें। इस प्रकार, मीडिया और शिक्षा संस्थान मिलकर एक ऐसा वातावरण तैयार कर सकते हैं, जहाँ विशेष बच्चे न केवल स्वीकार किए जाएँ, बल्कि उन्हें प्रेरणा का स्रोत भी माना जाए। यह बदलाव समाज में एक नई सोच और दृष्टिकोण को जन्म देगा। 



आइए, हम सब संकल्प लें, अपनी जिम्मेदारी निभाएं    


अपर्णा गुप्ता कहती हैं कि हम किसी विशेष बच्चे को “बेचारा” नहीं कहेंगे। हम उन्हें अवसर देंगे, दया नहीं। हम उन्हें अपनाएंगे, अलग नहीं करेंगे। असली सभ्यता वहीं है, जहां हर बच्चा मुस्कुराकर कह सके, “मैं भी इस समाज का हिस्सा हूँ, और मुझे भी उतना ही हक़ है जितना बाकी सबको।” जब समाज हर बच्चे को अपनाएगा, तभी हम सच्चे अर्थों में मानवता का परिचय देंगे। यह संकल्प हमें एकजुटता और सहानुभूति की ओर ले जाएगा। बच्चों के प्रति हमारी सोच में बदलाव लाना आवश्यक है। हमें यह समझना होगा कि हर बच्चा विशेष है और उसके पास अपने सपनों को पूरा करने का अधिकार है। समाज में जब हम बच्चों को समानता का अनुभव कराएंगे, तब ही हम एक सशक्त और समृद्ध भविष्य की ओर बढ़ सकेंगे। इस दिशा में उठाए गए कदम न केवल बच्चों के लिए, बल्कि पूरे समाज के लिए लाभकारी होंगे। हमें यह सुनिश्चित करना चाहिए कि हर बच्चा अपनी प्रतिभा को पहचान सके और उसे विकसित कर सके। इस संकल्प के माध्यम से हम एक ऐसा वातावरण तैयार कर सकते हैं जहाँ हर बच्चा अपने अधिकारों के प्रति जागरूक हो और समाज में अपनी भूमिका को समझ सके। आइए, हम सब मिलकर इस दिशा में प्रयास करें और एक सकारात्मक बदलाव लाएं।

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