Navratri special: भगवान राम की पूजा और महिषासुर वध से जुड़ी शारदीय नवरात्र की शुरुआत

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प्रारब्ध अध्यात्म डेस्क

शारदीय नवरात्रि का त्योहार माँ दुर्गा की उपासना और शक्ति का प्रतीक है। इसकी शुरुआत एक प्राचीन पौराणिक कथा से होती है, जो महिषासुर के अत्याचार और उसके वध से जुड़ी है।

कहानी के अनुसार, महिषासुर नामक एक शक्तिशाली असुर ने घोर तपस्या कर भगवान ब्रह्मा से अजेय होने का वरदान प्राप्त किया। वरदान से अहंकारी हो, उसने धरती और स्वर्ग दोनों पर अत्याचार करना शुरू कर दिया। देवता उससे हार गए और मदद के लिए भगवान ब्रह्मा, विष्णु और महेश के पास गए। तब तीनों देवताओं ने अपनी शक्तियों से माँ दुर्गा का निर्माण किया।


माँ दुर्गा ने महिषासुर से 9 दिनों तक घोर युद्ध किया। अंततः 10वें दिन, उन्होंने महिषासुर का वध कर अधर्म और अन्याय का अंत किया। इस प्रकार, माँ दुर्गा ने धर्म की स्थापना की। 


इस घटना की स्मृति में शारदीय नवरात्र मनाई जाती है, जहाँ नौ दिनों तक माँ के नौ स्वरूपों की पूजा की जाती है और 10वें दिन विजयदशमी के रूप में धर्म की जीत का उत्सव मनाया जाता है।


दूसरे प्रसंग में श्रीराम ने की थी शारदीय नवरात्रों की शुरुआत


पौराणिक कथा के अनुसार माना जाता है कि शारदीय नवरात्रि की शुरुआत भगवान श्रीराम ने की थी। रामजी ने मां को प्रसन्न करने के लिए नौ दिन तक मां दुर्गा की आराधना  की थी। जब राम जी ने मां दुर्गा की आराधना की तब अश्विन मास के शुक्ल पक्ष के ही दिन थे।


लंका युद्ध के दौरान  ब्रह्मा जी ने श्रीराम से रावण वध के लिए देवी को प्रसन्न करने के लिए कहा। रामजी ने माता को प्रसन्न करने के लिए पूजा के दौरान 108  कमल पुष्प रखे थे। रावण ने पूजा में विघ्न डालने के लिए अपनी माया से एक कमल चोरी करवा लिया।


जब रामजी को इस बात का पता चला कि एक पुष्प कम है, तो उन्होंने पूजा में विघ्न आए  इस लिए सोचा कि लोग उन्हें कमलनयन कहते हैं, इसलिए उन्होंने अपनी एक नेत्र मां को अर्पित करने के लिए बाण निकाला तो, मां प्रकट हो गईं  और उनको ऐसा करने से रोका।


माँ उनकी पूजा से प्रसन्न थी इसलिए माँ ने उनको दिव्य अस्त्र दिया।  मां दुर्गा से प्राप्त दिव्य अस्त्र  की सहायता से राम जी ने रावण का वध कर दिया। रावण का वध भगवान ने अश्विन मास की दशमी तिथि को किया था। भगवान श्रीराम ने रावण को हराकर विजय प्राप्त की थी। इसलिए इसे विजयदशमी के नाम से भी जाना जाता है।


या देवी सर्वभूतेषु शक्तिरूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः।।

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