Radha ashtmi राधिका अष्टमी : गोकुल-महावन के रावल गांव में जन्मीं थीं राधारानी

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राधिका अष्टमी आज 31 अगस्त को

प्रारब्ध धर्म अध्यात्म डेस्क 

राधिका जी के जन्म के सम्बंध में अनेक कथाएं शास्त्रों में वर्णित हैं। हालांकि ऐसा माना जाता है कि आज से करीब पांच हजार दो सौ वर्ष पूर्व मथुरा जिले के गोकुल-महावन कस्बे के निकट रावल गांव में भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि, अनुराधा नक्षत्र दोपहर 12 बजे पिता वृषभानु एवं माता कीर्तिदा के घर में पुत्री के रूप में श्री राधिका जी ने जन्म लिया था। 


श्री राधा रानी के जन्म के संबंध में यह भी कहा जाता है कि राधिका जी ने भगवान श्री कृष्ण की भांति अपनी माता के उदर से जन्म नहीं लिया। उनकी माता ने अपने गर्भ में केवल *वायु* को ही धारण किया था, तब देवी योगमाया की प्रेरणा से उन्होंने केवल वायु को ही जन्म दिया परन्तु वहाँ स्वेच्छा से श्री राधा जी प्रकट हो गईं।



श्री राधारानी जी कलिंदजा कूलवर्ती निकुंज प्रदेश के एक सुन्दर मंदिर में अवतरित हुईं थीं।जिस समय श्री राधिका जी का जन्म हुआ, उस समय सम्पूर्ण दिशाएँ निर्मल हो उठीं तब महाराज वृषभानु और महारानी कीर्तिदा ने अपनी पुत्री राधिका जी के कल्याण की कामना से दो लाख उत्तम गौए ब्राह्मणों को दान की थीं।


राधिका जी के जन्म की दूसरी कथा इस प्रकार है कि एक दिन जब वृषभानु जी सरोवर के पास से गुजर रहे थे, तब उन्हें एक बालिका कमल के फूल पर तैरती हुई मिली, जिसे उन्होंने पुत्री के रूप में अपना लिया तब राधिका जी का अभिषेक किया गया।


जिस समय श्री राधिका जी का अभिषेक किया गया उस समय सभी देवी-देवताओं ने वहां पुष्प वर्षा की और राधा जी को स्वर्ग के सिंहासन पर बिठाया, लेकिन स्वर्ग के सिंहासन पर आसित करते समय सभी देवताओं के मन में ये विचार आया कि राधा रानी तो सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड की अधीश्वरी देवी हैं तो फिर उन्हें केवल सोलह कोस में फैले वृंदावन का ही आधिपत्य सौंपने की क्या आवश्यकता है। काफी विचार-विमर्श के बाद यह निर्णय लिया गया कि बैकुंठ से भी कई गुना अधिक महत्व तो मथुरा का होगा और मथुरा से भी अधिक महत्व वृंदावन का होगा।


राधिका जी आयु में श्रीकृष्ण से ग्यारह माह बड़ी थीं, लेकिन श्री वृषभानु जी और कीर्ति देवी को ये बात शीघ्र ही पता चल गई कि श्री किशोरी जी ने अपने प्राक्ट्य से ही अपनी आँखे नहीं खोली हैं। इस बात से उन्हें बड़ा दुःख हुआ, लेकिन कुछ समय पश्चात जब नन्द बाबा की पत्नी यशोदा जी गोकुल से अपने लाडले कृष्ण के साथ वृषभानु जी के घर आईं तब वृषभानु जी और कीर्ति जी ने उनका स्वागत किया।


यशोदा जी कान्हा जी को गोद में लिए हुए राधाजी के पास आती हैं और जैसे ही श्री कृष्ण और राधा आमने-सामने आते हैं तब राधा जी पहली बार अपनी आँखें खोलती हैं। अपने प्राणप्रिय श्री कृष्ण को देखने के लिए! वे एकटक कृष्ण जी को निहारते ही रहती हैं। 


अपनी प्राणप्रिय राधिका को अपने सामने एक सुन्दर-सी बालिका के रूप में देखकर श्री कृष्ण स्वयं अत्याधिक आनंदित होते हैं।


एक बार जब राधाजी से श्री कृष्ण ने पूछा कि हमारे साहित्य में तुम्हारी क्या भूमिका होगी। इस पर राधाजी ने कहा कि मुझे कोई भूमिका नहीं चाहिए, मैं तो सदा आपके पीछे ही रहूंगी।

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