Prarabdh Dharm-Aadhyatm : आज का पंचांग एवं व्रत-त्योहार (26 मई, 2021)

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दिनांक : 26 मई 2021, दिन : बुद्धवार


विक्रम संवत : 2078 (गुजरात - 2077)


शक संवत : 1943


अयन : उत्तरायण


ऋतु : ग्रीष्म


मास : वैशाख


पक्ष : शुक्ल


तिथि - पूर्णिमा शाम 04:43 तक तत्पश्चात प्रतिपदा


नक्षत्र - अनुराधा 27 मई रात्रि 01:16 तत्पश्चात ज्येष्ठा


योग - शिव रात्रि 10:52 तक तत्पश्चात सिद्ध


राहुकाल - दोपहर 12:36 से दोपहर 02:15 तक


दिशाशूल - उत्तर दिशा में


सूर्योदय : प्रातः 05:58 बजे


सूर्यास्त : संध्या 19:13 बजे


व्रत पर्व विवरण -

 व्रत पूर्णिमा, वैशाख-बृद्व पूर्णिमा, वैशाख स्नान समाप्त, कूर्म जयंती, खग्रास व खंडग्रास चन्द्रग्रहण (पूर्वी भारत के कुछ क्षेत्रों में खंडग्रास दिखेगा, वही नियम पालनीय । 
 
विशेष - पूर्णिमा के दिन ब्रह्मचर्य पालन करे तथा तिल का तेल खाना और लगाना निषिद्ध है। (ब्रह्मवैवर्त पुराण, ब्रह्म खंडः 27.29-38)

पंचक


01 जून रात्रि 3.57 बजे से 05 जून रात्रि 11.27 बजे तक


28 जून प्रात: 12.57 बजे से 3 जुलाई प्रात: 6.15 बजे तक


व्रत-त्योहार विवरण


एकादशी


06 जून, रविवार : अपरा एकादशी


21 जून, सोमवार : निर्जला एकादशी


प्रदोष


07 जून, सोमवार : सोम प्रदोष व्रत


22 जून, मंगलवार : भौम प्रदोष


अमावस्या


10 जून, बृहस्पतिवार : ज्येष्ठ अमावस्या


पूर्णिमा


26 मई, बुधवार : बुद्ध पूर्णिमा


वैशाख पूर्णिमा

हिन्दू धर्म में वैशाख महिने की पूर्णिमा तिथि भी भगवान विष्णु व शक्ति स्वरूपा देवी लक्ष्मी की उपासना के लिए बहुत शुभ बताई गई है। माता लक्ष्मी को सुख-समृद्धि, धन, वैभव और ऐश्वर्य की देवी माना गया है।
 
वैशाख पूर्णिमा यानी 26 मई, बुधवार को देवी लक्ष्मी को प्रसन्न करने के लिए नीचे बताएँ उपाय करना भी शुभ व सुख-ऐश्वर्य देने वाला माना गया है-

सुबह के साथ ही खासकर शाम के वक्त भी स्नान कर माता लक्ष्मी की प्रतिमा की सामान्य पूजा कर  इस मंत्र का जप आर्थिक परेशानियों को दूर करने वाला होगा।
 
माता लक्ष्मी को लाल चन्दन, लाल अक्षत, लाल वस्त्र, लाल फूल, मौसमी फल, मिठाई अर्पित करें।

 माता को दूध से बनी खीर का भोग लगाएं। बाद  में देवी लक्ष्मी को इस वैदिक मंत्र स्तुति के उपाय का यथाशक्ति जप करें-

ॐ श्री महालक्ष्म्यै च विद्महे विष्णु पत्न्यै च धीमहि तन्नो लक्ष्मी प्रचोदयात् ॐ॥

 पूजा और मंत्र जप के बाद घी के दीप से माता लक्ष्मी की आरती करें।

आरती के बाद धन प्राप्ति और सुखी जीवन की कामना करते हुए पूजा-आरती में हुई त्रुटियों के लिए क्षमा प्रार्थना करें।
 

दुर्गति से रक्षा हेतु

मरणासन्न व्यक्ति के सिरहाने गीताजी रखें | दाह – संस्कार के समय ग्रन्थ को गंगाजी में बहा दें, जलायें नहीं |

मृतक के अग्नि – संस्कार की शुरुआत तुलसी की लकड़ियों से करें अथवा उसके शरीर पर थोड़ी – सी तुलसी की लकडियाँ बिछा दें, इससे दुर्गति से रक्षा होती है |

         

वैशाखी पूर्णिमा को ‘धर्मराज व्रत’ कहा गया है | यह पूर्णिमा दान-धर्मादि के अनेक कार्य  करने के लिए बड़ी ही पवित्र तिथि है | इस दिन गरीबों में अन्न, वस्त्र, टोपियाँ, जूते-चप्पल, छाते, छाछ या शर्बत , सत्संग के सत्साहित्य आदि का वितरण करना चाहिए | अपने स्नेहियों, मित्रों को सत्साहित्य, सत्संग की वीसीडी, डीवीडी, मेमोरी कार्ड आदि भेंट में दे सकते हैं |

 इस दिन यदि तिलमिश्रित जल से स्नान कर घी, शर्करा और तिल से भरा हुआ पात्र भगवान विष्णु को निवेदन करें और उन्हीं से अग्नि में आहुति दें अथवा तिल और शहद का दान करें, तिल के तेल के दीपक जलाये, जल और तिल से तर्पण करें अथवा गंगादि में स्नान करें तो सब पापों से निवृत्त  हो जाते हैं | यदि उस दिन एक समय भोजन करके पूर्ण-व्रत करें तो सब प्रकार की सुख-सम्पदाएँ और श्रेय की प्राप्ति होती है |

          

महामारी, रोग व दुःख शमन हेतु मंत्र

अग्निपुराण में महर्षि पुष्करजी परशुरामजी से कहते हैं कि “यजुर्वेद के इस (निम्न मंत्र से दूर्वा के पोरों की १० हजार आहुतियाँ देकर होता (यज्ञ में आहुति देनेवाला व्यक्ति या यज्ञ करानेवाला पुरोहित) ग्राम या राष्ट्र  में फैली हुई महामारी को शांत करे | उससे रोग-पीड़ित मनुष्य रोग से और दुःखग्रस्त मानव दुःख से छुटकारा पाता है |

काण्डात्काण्डात्प्ररोह्न्ती परुष: परुषस्परि |
एवा नो दूर्वे प्रतनु सहस्त्रेण शतेन च || (यजुर्वेद : अध्याय १३, मंत्र २०)

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